Saturday, February 13, 2010

pata nahi rab kehdean ranga vich razi

पता नहीं रब कहडॉयां रंगा विच राज़ी ---हरबजन मान
कई जग विच हुकम चला तुर गए ,कई खुद नु रब अखवा तुर गए ;
किस वेले किस राह तुर गए ,कोई पता न लगया भराजी;
पता नहीं रब कहडॉयां रंगा विच राज़ी

इकना दी गल पूरी होवे ,जो कुछ कहन जबानो ;
इकना दे हाथ अड्डे रह गए ,खाली गए जहानों;
उस डॉ्डे दी ओही जाने , जिसनी सृष्टि साजी
पता नहीं रब कहडॉयां रंगा विच राजी ;

महाबीर रणबीर सुरमे ताजां तख्तां वाले ;
मिटटी दे विच मिटटी हो गए किते न लब्दे भाले ;
सर्ब कला समरथ कोहोंदे अंत हार गए बाजी ;
पता नहीं रब कहडॉयां रंगा विच राजी ;

मान कहे जे में न होया , पता नहीं की होना ;
कुझ नहीं होना बस दो दिनां दा रोना ;
पलक झपक दियां रल जाने ने, विच हवा दे भाजी ;
पता नहीं रब कहडॉयां रंगा विच राजी ;

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