Wednesday, May 3, 2023

या -रब ग़म-ए-हिज्राँ में इतना तो किया होता ya rab gm-e hijran mein itna to kiya hota


 

या -रब ग़म-ए-हिज्राँ में इतना तो किया होता

शायर 

चराग़ हसन हसरत

These verses express the regret of not doing enough during a painful separation, the overwhelming impact of love on the heart, and the feelings of unfulfilled desires. The poet reflects on shattered hopes, broken promises, and the disappointment of not being heard or understood. Overall, the verses convey a longing and a yearning for something more while pondering the what-ifs and the consequences of different actions.

इस  गजल के मिसरे उस मुकदस मुकाम को इशारा करते हैं जो इंसानी जंदगी का मरकज है-- अल्ह से तुहीद की सोच है ॥  

 

1} या -रब ग़म-ए-हिज्राँ में इतना तो किया होता

जो हाथ जिगर पर है वो दस्त-ए-दुआ होता

 

ओह मेरे रब, रहमान, मेहरबान, परवरदीगार, रब्बुल-आलमीन,खालिक ---काश तुमने मेरी एक अर्ज पर तो तवजो दी होती॥ जब मैं तेरे बिछोड़े में तड़प रहा था, हिजर की कैद में अकेला था और तेरे दीदार की लिए पशेमान था –तब मेरी अंह को, अनह को, तुकबर को, गरूर को नासतो-न-बूत कर दिया होता॥ उस वक्त मेरे रूह के हाथ तेरी दुआ में शुक्राना में ऊपर उठे होते॥  क्योंकि तेरी रहमत-फजल-ओ-करम से मेरे कलब में विरह की आग भड़क उठी थी और मेरी दुई खत्म हो गई थी॥      

 

2} इक इश्क़ का ग़म आफ़त और उस पे ये दिल आफ़त

या ग़म न दिया होता या दिल न दिया होता॥

 

तेरे इश्क में किस किस तरह की आफत नहीं सही और दिल में कितनी परेशानी ओर बेचानी का मुक़बाला क्या है  ॥ तूने इस वजूद में, कलबूत में, ओह मालिक अपनी जुदाई के दर्द की अज़ीअत और परेशानी क्यों दे दी ॥ 

 

3} नाकाम-ए-तमन्ना दिल इस सोच में रहता है

यूँ होता तो क्या होता यूँ होता तो क्या होता॥

 

मेरा नफ़स हर वक्त दुनिएवी तमनों के सुमंद्र की लहरों से उछल रहा है। खाविषों का तूफान और उसके सेलाब से में दर बदर भटकता फिर्ता हूँ ॥ यह वजूद जो तूने अपनी इबादत के लिए बख्शा है उस में मैं क्यों गफलत कर रहा हूँ॥   

 

4} उम्मीद तो बंध जाती तस्कीन तो हो जाती

वअ'दा न वफ़ा करते वअ'दा तो किया होता

अगर तूने न--वाईदा-फर्माणी भी की होती, उसका भी मेरे को कोई अफसोस न होता॥ पर मेरे महबूब!!! तूने तो अपने विसाल का कोयी भरोसा भी नहीं दिलाया ॥ मेरे खुदा यह तेरी क्या मजबूरी थी ॥  

 

ग़ैरों से कहा तुम ने ग़ैरों से सुना तुम ने

कुछ हम से कहा होता कुछ हम से सुना होता

 

ओह मेरे रब तुमने तो दूसरे लोगों को अपने विसाल का राज जाहिर कर दिया और खुफिया तरीकत भी उन को बता दी ॥ मेरे को क्यों गेरों में शामिल कर दिया ॥