Monday, June 28, 2021

मेरे सर को दर तेरा मिल गया--NUSRAT FATEH ALI KHAN

 

मेरे सर को दर तेरा मिल गया, मुझे अब तलाशे हरम नहीं।

मेरी बंदगी है वो बंदगी,  जो कैद--दायरे--हरम नहीं।

मेरी एक नज़र तुम को देखना, वह खुदा नमाज से कम नहीं।

तेरा प्यार है बस मेरी ज़िंदगी॥ 


FROM QUALI OF NUSRAT ATEH -ALI-KHAN


Literal meaning-- Oh my Satguru, my Murshid -- this humble seeker has found the door to pay my obeisance and I seek no other place of worship.  My devotion is not constrained in the four walls of any structure. Oh Master, your one look is more than Namaz. Your yearning and craving are the sole purposes of my life.

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Introspective Understandingसूफियान फलसफे में वक्त के पीर--मुरशिद और मुरीद के इश्क के  रिश्ते को बहुत ही मुकदस माना जाता है मुरीद अपने मुरशिद की कबूलियत के वक्त अपनी ला-इंतह खुशी का इज़हार करता हुआ कह रहा है मेरे सर को दर तेरा मिल गया    

गुरबानी में भी इसी रिश्ते को बहुत तफ़सील से समझाया है जैसे “भाग होया गुरु संत मिलाया , प्रभ अबनासी घर में पाया” (Page 97) ॥ सतगुरु की मुलाकात (मिलाया) रब की बेअंत बखशिश और मुकद्दर के जरिए होती है और उस की मेहर से रब के एहसास का रास्ता आशकार होता है ॥ सिख के शुकराने के बारे गुरबानी के बचन हैं --कुर्बान जांवअंउस वेला सुहावीजित तुमरे द्वारे आया॥ नानक को प्रभ भए किरपाला सतगुरु पूरा पाया (Page 749)

सतगुरु जिस लम्हे सिख (की रूह) को कबूल कर लेते हैं उसे वेला सुहावी”—blessed moment  कहा गया है॥ उस वक्त रुहनीयत की तरीकत का राज़ या कलमे के जिक्र और मुराकबे (meditation)  करने की तरकीब समझ आती हैं॥ तब सतगुरु के शबद स्वरूपी या चरण कमल( मन और माया के मुकाम से ऊपर) जाने का सफर की शुरुआत होती है ॥ ऐसे रास्ते को ईमान, यकीन, सबर, रज़ा से तय किया जाता है ता कि  ज़िंदगी का  तवाजून या balance disturb न हो जाए ॥ 

इबादत--इश्क का सफर बेशक सतगुरु और सिख के आपसी तालुक से शुरू होता है ---पर असल में सतगुरु भी शब्द स्वरूप है और शिश भी शब्द है(“शबद गुरु सुरत धुन चेला) फरक इतना है कि शिश को रूह पर मन- माया के गिलाफ़ों की जानकारी नहीं होती और हकीकत से अनजान होता है जिस्म तो मुरशिद, मुरीद और हम सब का सपुर्दे खाक के काबिल है

इंसान अपने मन को तो गुरु मान सकता है, पर किसी दूसरे इंसान को गुरु मानना एक पेचीदा सवाल है ॥ गुरबानी कहती है –जिसको पूरब लिखया तिन सतगुरु चरन गहे Page 44॥   यहाँ पर अक्ल काम नहीं करती, सब नसीब के खेल है ॥ दूसरी जगह गुरबानी कहती है –सतगुर दाता हर नाम का, प्रभ आप मिलावे सोई Page39 ॥ 

सतगुरु की बतायी इबादत से शिश की ज़ाहरी और बतिनि ज़िंदगी में तबदीली जाती है॥ उसकी पुर जोश अक़ीदत आँदूरणी और अशकानी हो जाती है। The focus of life shifts from devotion of  external to inner dimension. जैसे जैसे शब्द, यानि इस्म- आजम की मार्फत से हकीकत का एहसास होता है, खालक का ज़हूर, शूर और नूर अंदर और बाहर  महसूस होता है॥

मेरी बंदगी कैद--दायरे--हरम नहीं की ताबीर है कि  इबादत, जमान-- मकान ( time and space) तक महदूद नहीं रहती॥ मुरशिद की नजर- इनायत और दीदार को नमाज़ या बंदगी का दर्जा दिया है ॥ ऐसी बंदगी के नतीजात को गुरबानी में – लख खुशियां पातशाहियाँ जे सतगुरु नदर करे (Page 44) बयान किया है ॥   किसी सूफी ने कहा है आशिक -इश्क नमाज़ हमेशा, ला-हरफ़ों करण अदायीआशिक का इश्क ही नमाज़ है जो कि अल्फ़ाज़,मुसले,तसबीह,वजू या सर झुकाने में पाबंद नहीं होती

कहा जाता है इश्क अंधा होता पर वहदत या oneness का एहसास भी ऐसे जनून में होता है ॥ Love is blind, meaning it can see no fault in the Beloved. That kind of blindness is the height of seeing यह इश्क ही सचे जप, तप, पूजा, पाठ, जिक्र, फिक्र, विरह, वैराग-- अनल हक का समान है ॥ 

शिश की हालत गुरु के दीदार के बेगैर कैसी होती है ---इक घड़ी न मिलते तो कलजुग होता ॥ Page 96 



Sunday, June 27, 2021

DIL HEART

 https://www.facebook.com/100039219943821/posts/339565440694118/?sfnsn=scwspwa&extid=yNXNUGwzWwwGHhUK

DIALOGUE BETWEEN A SEEKER AND THE FIFTH GURU मै आसा रखी चिति महि

 

DIALOGUE BETWEEN A SEEKER AND THE FIFTH GURU

(PAGE 763 SGGS)

Please also listen to the audio clip in silence and solitude.

https://drive.google.com/file/d/1hnydn4TjFNfjgN9n0uJZxVeI4kCDC2Dr/view?usp=sharing 

  

मै आसा रखी चिति महि मेरा सभो दुखु गवाइ जीउ

इतु मारगि चले भाईअड़े गुरु कहै सु कार कमाइ जीउ

तिआगें मन की मतड़ी विसारें दूजा भाउ जीउ

इउ पावहि हरि दरसावड़ा नह लगै तती वाउ जीउ

हउ आपहु बोलि जाणदा मै कहिआ सभु हुकमाउ जीउ

हरि भगति खजाना बखसिआ गुरि नानकि कीआ पसाउ जीउ

 

INTROSPECTIVE MEANING

 

“नानक दुखिया सब संसार” –यह एक बहुत ही इरफ़ानी फिकरा है॥ हर इंसान की ज़िंदगी, दिल के दरिया में दबी हुई दर्द या अरमानों की दासतान है॥ कभी कभी यह दर्द अपने रब के लिए रूह की हिजरी तड़प भी हो सकती है शब्द की पहली लाइन में  मुरीद की अपने मुरशिद  से अर्ज है,   --- कि गुरु साहिब मेरे सबरंज--गम का अज़ाब को दूर कर दो

सभो दुखु गवाइ जीउ means that the devotee prays for relief from the cycle of transmigration मुरीद की अरज़ी सिर्फ इस 80-90 साल की जिंदगी की दुशवारियों तक महदूद नहीं है    काएनत में रूह का सफर 84 लाख जूनियों में हो सकता है  इस नुक्त- नजर से कैद-ए- हयात में जितनी  भी इंसानी या गैर-इंसानी जामे की  परेशानीयाँ  84 लाख जूनियों में सकती हैं, मुरीद उनसे निजात या मुक्ति की गुज़ारिश कर रहा है॥

गुरु साहिब सलाह देते हैं --- अगर तेरे दिल की यही सची तमन्ना है तो पहले “गुरु कहै सु कार कमाइ जीउ —“जो कामिल-मुरशिद  कहता है उस पर अमल कर॥  अपने मन की मतड़ी की सोच, यानि दिमाग की दौड़ ( concepts of logic and rationality  or cause and effect) वहम-ओ-भरम,ठीक-गलत, सच-झूठ या गरूर--ख्याल का तर्क कर दे और अपने आप को उसकी रज़ा में राज़ी कर ले ॥ होमे, तुकबर और दूजे भाव से ला-तालुक हो जा॥ पर यह भी सच है “-बिन शबदे होमे किन मारी” ॥ मतलब नाम, शबद या इस्म-ए -आजम  का जिक्र और फिक्र-ओ-गौर, मुरशिद की बतायी हुई तरकीत से शुरू कर॥

मन दुनिया के काबू है और रूह मन के कब्जे में है दुनिया में अचानक् हालात बदलते हैं॥ अच्छे -बुरे अमलों का हिसाब-किताब होता है और ज़िंदगी सुख-दुख के वकफ़े से गुज़रती है ॥ मन में हमेशा डर और शक रहता है कि उसका comfort zone कहीं उथल पथल न हो जाए॥ इसी वजह मन बे-सकून रहता है॥

अगर दानिशमंदी होते हुए भी बंदे की रूहानी और नफ़सानी हालत बेहतर होने की बजाए बत्तर होती जाती हैतब कैद-- हयात से निजात पाना  जरूरी है अच्छे अम्लों का फ़ना होना भी जरूरी है क्योंकि इनका निबेड़ा करने के लिए भी कैद-ए-हयात का सफर लाज़िम हो जाता है (Good deeds are also golden chains in Karmic conundrum)           

 गुरु साहिब आगे कहते हैं --मन की मतड़ीमिथ्या है॥ इंसानी अक्ल सिर्फ नकल को ही समझ सकती है और हक से महरूम रहती है ॥  मतड़ी के तर्क से खुदा का दीदार होगा, अच्छे- बुरे करम बख्शे जाएंगे, और सब अज़ाब  गायब हो जाएंगे॥ खुदा से विसाल होगा और रूह मुकमे हक में समा जाएगी॥

गुरु साहिब फिर बड़ी हलीमी से मुरीद को फरमाते हैं  --- यह सलाह और तरीकत मेरी नहीं है,बल्कि मेरे को खुदावंद परवरदिगार के हुक्म से आशकार हुई है यह रूहानी खजाना हैजो गुरु नानक साहिब की रहमत और फजल--करम से अपने भक्तों के लिए नाज़ल किया है जितने भी गुरु सहबान हुए हैं –उन्हों ने “अपने गुरु” को गुरु नानक साहिब की अज़ीम अज़मत का सत्कार दिया है ॥