Friday, January 27, 2023

KABIR SAHIB SHABAD (पाती तोरै मालिनी पाती पाती जीउ ॥)

 KABIR SAHIB SHABAD (पाती तोरै मालिनी पाती पाती जीउ ॥)

Kabir Sahib and Guru Nanak Sahib were the chief proponents of the bhakti movement in the Indian medieval age. Their teachings pertained to eliminating external ritualism from Indian society to attain salvation which is the prime purpose of human life.

पाती तोरै मालिनी पाती पाती जीउ ॥

जिसु पाहन कउ पाती तोरै सो पाहन निरजीउ ॥१॥

भूली मालनी है एउ ॥

सतिगुरु जागता है देउ ॥१॥ रहाउ ॥

ब्रहमु पाती बिसनु डारी फूल संकरदेउ ॥

तीनि देव प्रतखि तोरहि करहि किस की सेउ ॥२॥

पाखान गढि कै मूरति कीन्ही दे कै छाती पाउ ॥

जे एह मूरति साची है तउ गड़्हणहारे खाउ ॥३॥

भातु पहिति अरु लापसी करकरा कासारु ॥

भोगनहारे भोगिआ इसु मूरति के मुख छारु ॥४॥

मालिनि भूली जगु भुलाना हम भुलाने नाहि ॥

कहु कबीर हम राम राखे क्रिपा करि हरि राइ॥

 

This Shabad of Kabir Sahib that appears on page 479 of Adi-Granth urges aspirants of the Lord to engage in true worship of the Lord through the Satguru.

Kabir Sahib invites us to contemplate devotion to God by evoking and nurturing the love for the Lord instead of worshipping Him through Devi-Devtas or deities or by Hawan, yagyas, or pilgrimages. Kabir's concept of Ram was the Lord, who is merged in each pore and particle of the Creation who could be realized in the inner dimension of the human body---- than to seek Him by external means like going to temples and offering flowers to the artificial deities of stone.

पाती तोरै मालिनी पाती पाती जीउ ॥

जिसु पाहन (stone) कउ पाती तोरै सो पाहन( stone) निरजीउ ( lifeless) ॥१॥

भूली मालनी है एउ ॥

सतिगुरु जागता है देउ ॥१॥ रहाउ ॥ 

In the above verses, he addresses the lady gardener who plucks leaves/flowers from the garden to offer to the Devi-Devtas. He questions the advantage of pooja or prayer when it entails killing the life (that is, the life of the leaves/ flowers) for prayer to lifeless Moortis (statues) of  Devi-Devtas carved out of stone or marble. Satguru, or the Lord, is the only Divinity that needs to be worshipped and to whom the devotion should be made for salvation or liberation from the cycle of 84, which is the prime purpose of human life. The notable intervention that is made here is सतिगुरु जागता है देउ –means Satguru and the Lord cannot be differentiated and that He is the Living Lord to whom the devotee should be devoted.

ब्रहमु पाती बिसनु डारी फूल संकरदेउ ॥

तीनि देव प्रतखि तोरहि करहि किस की सेउ ॥२॥

ब्रहमु पाती बिसनु डारी फूल संकरदेउ ॥

तीनि देव प्रतखि तोरहि करहि किस की सेउ ॥२॥

Further, he has mystically compared the leaf, plant branch, and flower with Hindu gods like Brahma, Vishnu, and  Siva(Mahesh). Kabir Sahib symbolizes Brahma, the leaf Vishnu as the branch or twig of the plant on which the flower is hanging, and the flower itself to Lord Shiva. (Note--Guru Nanak Sahib has described Brahma, Vishnu, and Mahesh as offspring of Maya, who act according to the Hukam of the Lord, are deities assigned with the management of the affairs of the world as ministers of the Lord. Jap ji Pauri 30) Kabir Sahib says that when you pluck a flower, you are essentially killing Brahma, Vishnu, and Siva for the sake of the stone's lifeless Moorti (statue). That is a metaphor for how people often remain oblivious to the suffering of others for the sake of their desires or pleasures.

पाखान गढि कै मूरति कीन्ही दे कै छाती पाउ ॥

जे एह मूरति साची है तउ गड़्हणहारे खाउ ॥३॥

He further elaborates that when the stone is shaped, the sculpture keeps his feet on it and cuts it in the form of Moorti (statue). Kabir Sahib then further chides that if that Moorti or statue is powerful enough or can do anything, then it must teach a lesson or reprimand  the artisan who has cut/configured  the stone, and in the process might have caused great pain and grief to the stone

भातु पहिति अरु लापसी करकरा कासारु ॥

भोगनहारे भोगिआ इसु मूरति के मुख छारु ॥४॥

The lady gardener or worshipper takes a lot of offering like fruits and sweet rice dishes (खीर) so that the Moorti enjoys and be pleased with this devotion. The priestly class enjoys such offerings while they smear the mouth of Moorti with ash.

मालिनि भूली जगु भुलाना हम भुलाने नाहि ॥

कहु making कबीर हम राम राखे क्रिपा करि हरि राइ..

There is further taunt in the message of Kabir Sahib that the lady gardener might forget or ignore the reality or even if the entire world doesn't care about such a fake form of worship, but Kabir knows what true devotion is and what pleases the Lord. He has been blessed by the Lord's Grace and always prays for His Grace.

Kabir Sahib thus highlights the futility of such rituals and stresses the need to be devoted to the True Master, the Satguru, to attain salvation.

 

 

Wednesday, January 18, 2023

GOD'S GRACE ---खुदा की रहमत

 

खुदा की रहमत

खुदा की रहमत ला-महदूद है, असीम है॥ सारी काएनत और सारी मखलूक  उस खालिक के रहमो-करम का करिश्मा है॥ पर इंसान उस रहमान के फज़लो कर्म के एहसास से पूरी तरह से वाकिफ नहीं है॥  अगर काएनत की हयात एक पल भी उस रहीम के रहम से महरूम हो जाए तो सारे जहान में कयामत आ जाए ॥ उसकी कुवत (energy) के बिना , जो रहमत के जरिए नाज़ल होती है, कोई भी वजूद-- माजी, या हाल या मुस्तकबिल—में न तो पैदा हो सकता है, न उसकी परवरिश हो सकती है  और न हि कायम रह सकता है ॥ तभी तो उसको परवरदिगार कहा गया है ॥

इंसान जब असानियों में या ऐशों इशरत में या सुख में होता है तब वोह या तो उस का शुक्र करता है, और यह भी  मुमकिन है कि वोह अपनी अनह और तुकबर में आकर अल्लाह -पाक को भूल जाता हो या फिर ऐसा बदगुमान हो जाता हो जैसे कि सारी कामयाबी का ज़रिया  उसकी मेहनत और मुशक्त से हुई हो॥ आदमी भूल जाता है कि हर सांस के लिए वोह अल्लाह ताला और उसकी बनायी हुई कुदरत या कसरत का करजदार  है ॥  

जब कभी फिर वक्त अपनी गर्दिश दिखाता है और ज़िंदगी में आज़ईयतों का सामना करना पड़ता है तो आदमी दुबारा या बार बार खुदा की रहमत की तलब करता है ॥ अगर आदमी की नफ़सानी जरूरत पूरी हो जाए,तब वोह अल्लाह की नियामत का शुक्र करता है और उसके इबादत ,प्रेम इश्क में भरोसा रखता है॥ हर इंसान के साथ ज़िंदगी में केई ऐसे वाकयात गुजरते हैं ---पर अच्छे वक्त में वोह मालिक को फिर नज़र-अंदाज कर सकता है॥ ज़हन में उसकी उम्दा तवको और किरपा का ख्याल गुम हो जाता है ॥   

एक और बात की तफ़सील करना यहाँ जरूरी है ॥ क्यी बार किसी शकस की नफ़सानी और जिसमानी चाहत, प्यास, तमणा, वहशत और जरूरत, अल्लाह न कबूल कर देता है तो उस बंदे का   इखलास, इबादत और इश्क कमजोर पड़ जाता है ॥ यह भी खुदा की रहमत का जरिया है ॥ कैसे ?? न-कबूलियत का मतलब है कि जिस चीज का बंदा तलबगार है वोह उसके लिए फायदेमंद नहीं है और ज़िंदगी में नुकसानमंद साबित होगी ॥ अल्लाह बेहतर जानता है कि उसके वजूद के लिए क्या अच्छा या बुरा है ॥ जो दे सकता है वोह जान भी सकता है कि क्या देना है या नहीं देना ॥ मुकद्दर सब को नसीब होता है –और जब अल्लाह तकदीर बनाता है वोह कोई गलती नहीं करता—फरक नहीं करता  या थोड़ा -बहुत नहीं करता ॥ रूह और जिस्म के मुताबिक जो जो जरूरत वाजिब और मुमकिन है, वोह हर जीव को तकसीम कर देता है ॥ क्योंकि एक अल्लाह ही है जो कि हक है और हक ही कामिल और खालिस है॥ उसकी कायनात में निजाम भी हक का है, और जिस में कोयी अदालत, दुनियावी हो या फरिश्तों की, दखल नहीं दे सकती ॥ सब काम खुदा के फजल-ओ-करम से होते हैं, जो कि अक्ल, सियानप,होशयारी, दानिशमंदी,तदबीर और नफ़स के तर्क के परे है ॥

दुख और तकलीफ से भी अल्लाह अपनी नावज़िशों को नाज़ल करता है ॥ उसकी याद एक मुकदस ख्याल है जिसका जिक्र किसी भी आरिफ या मुरीद में हमेशा चलता रहना चाहीये ॥  गुरु नानक साहिब कहते हैं “दुख दारू सुख रोग भया” यानि अजीयत का वक्त बंदे के लिए दवा बन जाता है--- क्योंकि वोह खुदा को याद करता है ॥  मुखतसर तौर पर कहा जाए, तो रुहनीयत में पहला कदम खुदा का जिक्र है –जो कि हर वक्त बातिन (inwardly) में चलता रहना चाहीये ॥ सुख में बंदा गफलत करता है॥ अक्सर उस मालिक के जिक्र की लापरवाही करता है ॥ गुरु नानक साहिब फरमाते हैं—कि रूहानी नजरिए से सुख एक बीमारी के जानिब है जिस में बंदा बंदगी से, जो कि इंसानी वजूद का वाहिद और पाक मकसद है, हुकम है, उस की ना-फरमानी करता है ॥

केई बार यह भी सवाल सोच में आता है कि कुछ कुदरत के खतरनाक कारनामे जैसे तूफान, ज़लज़ले, सेलाब,महामारी,वबा और catastrophic events भी क्या मालिक की नियामत है?? इंसानी ज़हन में यह एहसास आना इंतहायी मुश्किल है॥ इसकी समझ सिर्फ तब ही आ सकती है जब बंदा उस रज़ाक  कि रज़ा से वाकिफ हो जाए या पहचान जाए ॥ कुरान शरीफ में अल्लाह को अल-बसीर भी कहा गया है--  जो सारी काएनत के देख रहा है, उसकी तर्बियत कर रहा है ॥ इंसान का नफ़सानी ख्याल खुदगर्ज है, यानि कि वोह सिर्फ अपने या अपने चाहने वालों की पर्वाह करता है और उनके लिए फिक्रमंद रहता है ॥ अल्लाह पाक ने तमाम मखलूक का  –आगाज़ से आखिर तक –इब्तदा से अंत तक की परवरिश का ज़िमा लिया हुआ है और उसके मुताबिक वोह कायेणात में बदलाव लाता है ॥ दुनिया कि कोयी एसी शे नहीं जो बदलाव की गर्दिश में न हो॥ इसलिए चाहे मौत हो या ज़िंदगी या कुदरत की उथल पथल, एक मंसूबे या तदबीर के तहत चल रहे हैं ॥अगर बंदे का एहसास अपनी  खुदगरज़ी के दायरे की सोच से बाहर आ जाता है तो उसका डर और फिक्र कम हो सकता है॥ जिस हादसे को हम बुरा समझते हैं ---वोह भी होनी का हिस्सा है॥  खुदा के बंदे ऐसी अनहोनी को रज़ा मान कर कबूल करते हैं और बेहतर समझते हैं॥ गुरु तेग बहादुर लिखते हैं –

चिंता ता की कीजीऐ जो अनहोनी होइ ॥इहु मारगु संसार को नानक थिरु नही कोइ॥