Saturday, February 13, 2010

kalyuh nahi karyug hai

THE following poem is by AHMED NAZIR-- a poet of Pakistan . HERE he beautifully describes the law of karma and karmic retribution.Tks to Google's Transliteration software , it is written below in Devnagri script. Will not be readable on Blackberry--But on all Laptops and computers.

दुनिया अजब बाज़ार है , कुछ जिन्स बाकी साथ ले ;

नेकी का बदला नेक है बद से बदी की बात ले ;

मेवा खिला मेवा मिले , फल फूल दे फल पात ले ;
आराम से आराम ले ,दुःख दर्द से आफत ले ;

कलयुग नहीं , करयुग है , यहाँ दिन को दे रात को ले;
यहाँ खूब सौदा नकद है , इस हाथ दे उस हाथ ले ;

कांटा किसी को मत लगा , किस बात पर फूला है तू ;
वैह तेरी हिक में तीर है , किस बात पर भूला है तू ;

मत आग में ड़ाल और को , घास का फूला है तू ;
सुन यह नुक्ता बे-खबर (ध्यान से ), किस बात पर फूला है तू ;

शेखी शरारत मकरपन सब का बसीखा (हिसाब) है यहाँ ;
जो जो दिखाया और को , वैह आप भी देखा है यहाँ ;

नुकसान में नुकसान है , एहसान से एहसान है ;
तोहमत में तोहमत लगे, तूफ़ान से तूफ़ान है ;

रहमान को रहमान है , शेतान को शेतान है ;
कलयुग नहीं , करयुग है , यहाँ दिन को दे रात को ले;
यहाँ खूब सौदा नकद है , इस हाथ दे उस हाथ ले ;

यहाँ ज़हर दे तो ज़हर ले, शक्कर से शक्कर देख ले ;
नेकों को नेकी का मज़ा , मोती कूट कर देख ले ;
अगर तुझ को यह मालूम नहीं ,तो तू भी कर के देख ले ;

अपने नफस के वास्ते , मत औरों का नुक्सान कर ;
तेरा भी नुक्सान होगा , इस बात पर तू ध्यान कर ;

खाना जो तू खा , देख कर , पानी पी तू छान कर ;
यहाँ पाँव रख फूक कर , और खोफ से गुजरान कर ;
गफलत की यह जगह नहीं , यहाँ तिल तिल का हिसाब है ;
दिलशाद (खुश ) रख , दिलशाद रह ,गुमनाक रख गुमनाक रह;
हर हाल में बन्दे हर कदम की खाक रह ;
यह वैह मुकाम है मिआं , पाक रह बेबाक( बिना डर के ) रह ;

कलयुग नहीं , करयुग है , यहाँ दिन को दे रात को ले;
यहाँ खूब सौदा नकद है , इस हाथ दे उस हाथ ले ;

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