Wednesday, January 18, 2023

GOD'S GRACE ---खुदा की रहमत

 

खुदा की रहमत

खुदा की रहमत ला-महदूद है, असीम है॥ सारी काएनत और सारी मखलूक  उस खालिक के रहमो-करम का करिश्मा है॥ पर इंसान उस रहमान के फज़लो कर्म के एहसास से पूरी तरह से वाकिफ नहीं है॥  अगर काएनत की हयात एक पल भी उस रहीम के रहम से महरूम हो जाए तो सारे जहान में कयामत आ जाए ॥ उसकी कुवत (energy) के बिना , जो रहमत के जरिए नाज़ल होती है, कोई भी वजूद-- माजी, या हाल या मुस्तकबिल—में न तो पैदा हो सकता है, न उसकी परवरिश हो सकती है  और न हि कायम रह सकता है ॥ तभी तो उसको परवरदिगार कहा गया है ॥

इंसान जब असानियों में या ऐशों इशरत में या सुख में होता है तब वोह या तो उस का शुक्र करता है, और यह भी  मुमकिन है कि वोह अपनी अनह और तुकबर में आकर अल्लाह -पाक को भूल जाता हो या फिर ऐसा बदगुमान हो जाता हो जैसे कि सारी कामयाबी का ज़रिया  उसकी मेहनत और मुशक्त से हुई हो॥ आदमी भूल जाता है कि हर सांस के लिए वोह अल्लाह ताला और उसकी बनायी हुई कुदरत या कसरत का करजदार  है ॥  

जब कभी फिर वक्त अपनी गर्दिश दिखाता है और ज़िंदगी में आज़ईयतों का सामना करना पड़ता है तो आदमी दुबारा या बार बार खुदा की रहमत की तलब करता है ॥ अगर आदमी की नफ़सानी जरूरत पूरी हो जाए,तब वोह अल्लाह की नियामत का शुक्र करता है और उसके इबादत ,प्रेम इश्क में भरोसा रखता है॥ हर इंसान के साथ ज़िंदगी में केई ऐसे वाकयात गुजरते हैं ---पर अच्छे वक्त में वोह मालिक को फिर नज़र-अंदाज कर सकता है॥ ज़हन में उसकी उम्दा तवको और किरपा का ख्याल गुम हो जाता है ॥   

एक और बात की तफ़सील करना यहाँ जरूरी है ॥ क्यी बार किसी शकस की नफ़सानी और जिसमानी चाहत, प्यास, तमणा, वहशत और जरूरत, अल्लाह न कबूल कर देता है तो उस बंदे का   इखलास, इबादत और इश्क कमजोर पड़ जाता है ॥ यह भी खुदा की रहमत का जरिया है ॥ कैसे ?? न-कबूलियत का मतलब है कि जिस चीज का बंदा तलबगार है वोह उसके लिए फायदेमंद नहीं है और ज़िंदगी में नुकसानमंद साबित होगी ॥ अल्लाह बेहतर जानता है कि उसके वजूद के लिए क्या अच्छा या बुरा है ॥ जो दे सकता है वोह जान भी सकता है कि क्या देना है या नहीं देना ॥ मुकद्दर सब को नसीब होता है –और जब अल्लाह तकदीर बनाता है वोह कोई गलती नहीं करता—फरक नहीं करता  या थोड़ा -बहुत नहीं करता ॥ रूह और जिस्म के मुताबिक जो जो जरूरत वाजिब और मुमकिन है, वोह हर जीव को तकसीम कर देता है ॥ क्योंकि एक अल्लाह ही है जो कि हक है और हक ही कामिल और खालिस है॥ उसकी कायनात में निजाम भी हक का है, और जिस में कोयी अदालत, दुनियावी हो या फरिश्तों की, दखल नहीं दे सकती ॥ सब काम खुदा के फजल-ओ-करम से होते हैं, जो कि अक्ल, सियानप,होशयारी, दानिशमंदी,तदबीर और नफ़स के तर्क के परे है ॥

दुख और तकलीफ से भी अल्लाह अपनी नावज़िशों को नाज़ल करता है ॥ उसकी याद एक मुकदस ख्याल है जिसका जिक्र किसी भी आरिफ या मुरीद में हमेशा चलता रहना चाहीये ॥  गुरु नानक साहिब कहते हैं “दुख दारू सुख रोग भया” यानि अजीयत का वक्त बंदे के लिए दवा बन जाता है--- क्योंकि वोह खुदा को याद करता है ॥  मुखतसर तौर पर कहा जाए, तो रुहनीयत में पहला कदम खुदा का जिक्र है –जो कि हर वक्त बातिन (inwardly) में चलता रहना चाहीये ॥ सुख में बंदा गफलत करता है॥ अक्सर उस मालिक के जिक्र की लापरवाही करता है ॥ गुरु नानक साहिब फरमाते हैं—कि रूहानी नजरिए से सुख एक बीमारी के जानिब है जिस में बंदा बंदगी से, जो कि इंसानी वजूद का वाहिद और पाक मकसद है, हुकम है, उस की ना-फरमानी करता है ॥

केई बार यह भी सवाल सोच में आता है कि कुछ कुदरत के खतरनाक कारनामे जैसे तूफान, ज़लज़ले, सेलाब,महामारी,वबा और catastrophic events भी क्या मालिक की नियामत है?? इंसानी ज़हन में यह एहसास आना इंतहायी मुश्किल है॥ इसकी समझ सिर्फ तब ही आ सकती है जब बंदा उस रज़ाक  कि रज़ा से वाकिफ हो जाए या पहचान जाए ॥ कुरान शरीफ में अल्लाह को अल-बसीर भी कहा गया है--  जो सारी काएनत के देख रहा है, उसकी तर्बियत कर रहा है ॥ इंसान का नफ़सानी ख्याल खुदगर्ज है, यानि कि वोह सिर्फ अपने या अपने चाहने वालों की पर्वाह करता है और उनके लिए फिक्रमंद रहता है ॥ अल्लाह पाक ने तमाम मखलूक का  –आगाज़ से आखिर तक –इब्तदा से अंत तक की परवरिश का ज़िमा लिया हुआ है और उसके मुताबिक वोह कायेणात में बदलाव लाता है ॥ दुनिया कि कोयी एसी शे नहीं जो बदलाव की गर्दिश में न हो॥ इसलिए चाहे मौत हो या ज़िंदगी या कुदरत की उथल पथल, एक मंसूबे या तदबीर के तहत चल रहे हैं ॥अगर बंदे का एहसास अपनी  खुदगरज़ी के दायरे की सोच से बाहर आ जाता है तो उसका डर और फिक्र कम हो सकता है॥ जिस हादसे को हम बुरा समझते हैं ---वोह भी होनी का हिस्सा है॥  खुदा के बंदे ऐसी अनहोनी को रज़ा मान कर कबूल करते हैं और बेहतर समझते हैं॥ गुरु तेग बहादुर लिखते हैं –

चिंता ता की कीजीऐ जो अनहोनी होइ ॥इहु मारगु संसार को नानक थिरु नही कोइ॥                   


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