Thursday, June 3, 2021

कभी खुशी कभी गम ( Happiness and Sorrow)

 

                                                  कभी खुशी कभी गम ( Happiness and Sorrow)                                                                                                 

ü  जब मालिक की मौज, बंदे की चाहत के मुताबिक हो तो उसे खुशी कहते हैं॥

ü  और जब रब का फज़ल आदमी की उम्मीद से कम हो, या रब-- रज़ा इंसान की मर्जी के मुताबिक हो, तो उसे गम के नाम से पुकारते हैं

ü  रूहानी फलसफे और फिक्र में गम की कएफीयत खुशी के लम्हों से बेहतर, आला और उम्दा है

 

(Inspired from the talks of Hazrat Wasif Ali Wasif)

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इंसान आदत से मजबूर है कि वोह खुशी तब महसूस करता है जब उसके मन की चाहेतएं या अरमान पूरे हो जाएं॥   रब का शकराने करता है, और उसका ईमान थोड़ी देर के लिए पुख्ता होता है॥ रब को रज़ा- बख्श- राज़क और रहमान मानता है    

अगर उसकी खाईश उम्मीद के मुताबिक पूरी हो, या उसकी सोच के हिसाब से दुनियावी मामलात चलें, तो वोह उसी रब से नाराज़ और खफा हो जाता है खुदा को -इल्मी कहता है और एतमाद में नफी जाती है , गमगीन हो जाता है ज़िंदगी की गर्दिश से बेदार हो जाता है अपनी किस्मत को कोसता है और सोचता है कि अल्लाह ने मेरी तकदीर को तदबीर से नहीं बनाया बस एक वाकयात या कुछ ऐसे हालात ही काफी है खुशी को गम में तब्दील करने के लिए फलसफा यह है कि जब आदमी की उम्मीद और रब के फज़ल में फरक जाए तो उसे गम या दुख कहा जाता है॥ इंसान को यह भी सोचना चाहीये कि मुक़दर का सिकंदर भी अखरीयत में खाक ही छान रहा था

अगर हम गौर करें तो दुख में ही उस अल्लाह की मजीद याद आती है॥ जब मालिक की याद में इज़ाफ़ा होये तो रूहानी तोर से यह एक बहुत मुबारक मंज़र और मर्तबा हैं रब ज़हनी तोर से हमें समझा रहा होता है-- कि हुक्म- इलाही की तामील सब को करनी है-- और उसका हुकम, इन्सान के शौक, मौज या अरमानों का मुहताज नहीं है॥ पर आदमी अपने गरूर से इतना अहमक है कि यह समझता है--  इसकीहर सांस यह कहती है हम हैं तो खुदा भी है जब किहर ज़र्रा चमकता है अनवर--इलाही से॥ ( अकबर इलाहिबादी के कलाम)     

पूछा जाए कि इंसानी वजूद की रहमत किस ने की?? जवाब है  मालिक ने मालिक ने बंदे पर रहमत की कोई कमी नहीं  रखी॥ सारी काएनत  हुक्म में पाबंद है और कुदरत के जरिए हर शेय की तरबीयत  कर रहा है   अगर बंदे को अपना फिक्र है, तो खुदा को उसका ला -इनताह फिक्र है॥  और जो जरूरतें हाल या माज़ी में आदमी की मरजी के मुताबिक पूरी नहीं हुए, वोह भी उस बंदे और सारी दुनिया की बेहतरी की एक करामात है

पर इंसान को खुदा की अकलमंदी पर हमेशा शक रहता है ज़रा गौर करो-- रब ने बंदे को उससे पूछ के पैदा नहीं किया, ही करेगा॥ ही उसकी-- अक्ल, शक्ल, वजूद, दुनिया, मुल्क,माशरा, दिन आदि, आदमी की सोच के हिसाब से बख्शी है मौत भी उसके हुक्म से आती है और आएगी भी इसके इख्तियार में है क्या?  शेख इब्राहीम ज़ौक़ का शेर है

लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले

 

अपनी खुशी आए अपनी खुशी चले 

 

 

I came as life had brought me. As death takes me, I go

I came not of my own accord, nor of my own, I go  

जिस हवा, पानी, जमीन, आसमान, सूरज, चाँद, सब्जी, फल, वालिद-वल्दियन , रिश्तेदार, कुनबा आदि --- जिस पर कि बंदा अपनी ज़िंदगी का गुज़ारा कर रहा है इसके इख्तियार में नहीं हैं कैद की गर्दिश में ही हयात का कारखाना चल रहा है  ग़ालिब का भी एक शेर है

क़ैद--हयात बंद--ग़म अस्ल में दोनों एक हैं

मौत से पहले आदमी ग़म से नजात पाए क्यूँ  

Man’s sorrows and grief, and this process of imprisoned life—run concurrently. Before death, man cannot get relief from the pain of sorrows. 

 

अगर कोई यह दावा करता है कि दुनिया doctrine of logic से चलती है या law of probability  से चलती है, इसको भी मानना मुश्किल है क्योंकि इंसान की अक्ल पर law of limitation लागू होता है      यह संसार उसके हुकम से चलता है और उसका हुकम लफ्जों में कैद नहीं किया जा सकता रुहानियत के शहनशाह गुरु नानक साहिब कहते हैंहुक्म केहा जायी( His will cannot be expressed in words.)

खुशी के वक्त इंसान अपनी अनह को अल्लाह की ज़ात से ऊपर रखता है॥ रब के जिक्र, फिक्र या सिमरन से गफलत करता है॥ खुदी के आलम  में दीवाना और मस्ताना हो जाता है  आदमी को सारी काएनत भी मिल जाए, पर वोह फिर भी खुदा की याद के मुकाबले में एक ज़र्रे के - मामूल के बराबर है !! आलमा इकबाल ऐसी कएफियत को इस तरह लिखते हैं

 

ये माल--दौलत दुनिया ये रिश्ते पेवन्द,,

बूतन--वहम- गुमान, -इल्हा -ईलअल्लाह॥

 

खिरद हुई है ज़मान मकान की जुनारी

है ज़मान मकंया  -इल्हा -ईलअल्लाह॥  

 

All treasures and relationships of this world are idols of illusion, except the Lord.

 

 

Intellect is befooled by the concept of time and space, while they don’t exist. Only the Lord exists.

 

 

हर वोह शेय जो  मालिक (वाहिद- ला-शरीक, the One who has no partner)  से मोहब्बत पैदा करती है या मोहब्बत में इजाफा करती हैबहुत ही मुबारक है॥ सजदे के काबिल है शेख सादी भी कहता हैं कि जिस जगह खुदा की याद मौजूद नहींवहाँ खुदा मानो है ही नहीं॥ याद से ही मौजदगी का पता चलता है और इश्क पैदा होता है खुदा मुहब्बत का मुजसम है॥ रब के जिक्र से ही प्रेम और प्रीतम में विरह या तड़प आती  है॥ कामी को जैसे कामिन की चाहत होती है-- अगर वैसा  ज़ज़्बा रब के लिए मोमिन में जाए तो हिजर(separation) की दर्द खत्म हो जाए॥    इश्क में ही इंसान एकता में या तौहीद  का सफर शुरू करता है

हम सब दुनिया से परेशान भी हैं --पर एक सूअर के मानिंद गंदगी ( कूड़ा ) को पसंद भी करते हैं सूअर मिठयाई नहीं खाएगा, क्योंकि उसकी चाहत गंदगी है आदमी भी फ़ानी समान समटने की कोशिश में लगा हुआ है , दर -दर भटक भी रहा है  कि सकून  हासिल कर सके पर नतीजा बे- सकूनी का होता है॥ अगर कुछ अरमान पूरे भी हो जाएं तो उनके फिसलने या खत्म होने की घबराहट और डर का अंदेशा मन को परेशान करती है  हिन्दी फिल्मचोर मचाए शोरका गाना है

घुंघरू की तरह बजता ही रहा हूँ मैं
कभी इस पग में, कभी उस पग में
बंधता ही रहा हूँ मैं


कभी टूट गया, कभी तोड़ा गया
सौ बार मुझे फिर जोड़ा गया
यूँ ही लुट-लुट के, और मिट-मिट के
बनता ही रहा हूँ मैं

I have been ringing like tinkling bells with the dancing steps (of life) while I remain bound in my self-deception.

 

 

 

Sometimes I felt heartbroken, and other times I was snatched. Hundred times I have beaded again, but each time I was looted into nothingness.

 

जब तक अल्लाह की रज़ा या फज़ल से सची इबादत और मुहब्बत से नहीं होती, तब तक गम ही इस दुनिया की कएफीयत है जब तक रब से इश्क नहीँ हो जाता है तब तक ज़िंदगी की परेशयनियाँ लाज़िम ही रहँगी॥ जितने भी सूफी, वली, संत, सतगुरु, औलिया या पीर पेगमबेर हुए हैं  उनकी तालीम का तासीर यह ही है-- इस दुनिया में दिल लगाने की कोशिश करो क्योंकि इस बुनयाद - पायेदार है   बहादुर शाह ज़फ़र, मुगलों के आखरी गद्दी नशीन, जिनको एक सूफी सुल्तान भी माना जाता हैबर्मा में अपनी कैद के दुरान यह शेर लिखते है

 

लगता नहीं है दिल मेरा इस उजड़े दयार में

किस की बनी है आलमे -पायेदार में 

My heart does not relish this barren territory.  Its existence is transient.

     

अगर इस को दूसरे अंदाज में समझा जाए तो --यह दुख या गम या तनहाई या फुरकत रूह की कशिश है अपने असल की तरफ, अपनी खुद- शनासत  ( self-realization) के लिए॥ इसको मालिक का रूहानी तोफा समझ कर हलीमी से कबूल  करना चाहिए और शुक्राना फरमाना चाहीये मालिक की शान में गुरु गोबिन्द सिंह जी ने अपने जफरनामे में फारसी में लिखा है --

अमन  बख्श बख्शइंदह  -  दस्तगीर 

खत्ता बख्श रोज़ी देह - दिलपाज़िर 

 

He (the Lord) grants peace and security and is always merciful in forgiving us for our sins. He holds our hand and guides us. He is a provider of our sustenance and charms everyone.

 

 

सार यह है दुख या गुम के हालात को रब--फजल मानकर मुक़दस  जानो॥ क्योंकि तवजू अल्लाह पाक की तरफ खिचती है चाहे दुख दुनियावी मामलात के लिए क्यों हो   गुरु नानक साहिब के बचन हैं कि इंसान का  दुख--दवा या दारू बन जाता है, जब कि सुख एक बीमारी या रोग में तब्दील हो जाता है सुख या खुशी  हमारी निज़ात या मुक्ति की रुकवाट बनती है  और जहां सुख है वहाँ रब- करीम , रब--रहीम नहीँ है और इंसान के बस में कुछ है नहीं॥

दुखु दारू सुखु रोगु भइआ जा सुखु तामि होई

तूं करता करणा मै नाही जा हउ करी होई ॥१॥|

 

Suffering is the medicine and pleasure of the disease because there is no desire for God where there is a pleasure.

You are the Creator Lord; I can do nothing. Even if I try, nothing happens

 

 


3 comments:

  1. बहुत खूबसूरती से समझाया गया है दुख और सुख का सार। काश आदमी पर रहमत हो और वह रबी इश्क में आ जाए। बिना देखे मुहब्बत होना इक बख़्शिश ही है जो सबकी किस्मत में नहीं। पर फिर भी उसकी ओर सफर जारी रहना चाहिए।

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  2. Nice thoughts, 'उरूज अच्छा है न ज़वाल अच्छा है। यार जिस हाल में रखे वह हाल अच्छा है। '

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