REALIZATION DAWNS IN DOMAIN OF LOVE
इश्क ही असल में इल्म है!!
रूहानी नुक्त -ए -नजर से इल्म (understanding) की मुराद इश्क हक़ीक़ी से है ॥ ऐसे इश्क का ताल्लुक खुदा से “एक” हो जाने या तौहीद का तजुरबा पाना है॥ कायेणात की बाकी सब मालूमात या तालीम या जानकारी और समझ सिर्फ information के दायरे में आ जाती है॥ जब तक इंसान की रूह पर ऐसे इश्क हक़ीक़ी का वाक्य से नहीं गुज़रता तब तक मालूमात में हमेशा नफी ही रहेगी ॥ जब, बाबा बुल्ले शाह ने कहा –"इलमों बस करीऑनो यार, इको अलिफ़ तेरे दरकार" – उनका इशारा दुनिया की तालीम को तर्क करने का था और अल्लाह की ज़ात में फ़ना होने का है ॥ हज़रत सुल्तान बाहु भी फरमाते है –इश्क अक्ल विच मंज़ल भारी सौ कोहाँ दे पाड़े हू , जिनहा इश्क न खरीद कीता, ओह दोनी जाहनी मारे हू ॥ इश्क की कएफीयत को अक्ल के पेमाने में आजमाया नहीं जा सकता ॥
ला इलाह ईल अल्लाह का मतलब यही है कि खुदा या रब के सिवा कोई शे नहीं है जो सोच के मुकाम से परे है ॥ वोह वाहिद-ल-शरीक है, यही तौहीद है और बाकी सब खुदी या द्वेत या दूजा बुतखाने का भ्रम है ॥ मालिक की जितनी भी सिफ्तें हैं—एको, अल-वाहिद, वाहेगुरु, निर्भयाओ, निरवैर, अजूनी, परमात्मा, ईश्वर, रहमान, करीम, रहीम ,गफ्फार, राज़क, अज़ीज़, हकीम, हाकिम, जब्बार, अल-अदल-- आदि सब मालिक की के गुणों की मालूमात या सिफ़त है॥ पर असली इल्म वोह है जब कि आदमी हकीकत में ज़ाती दावा कर सके कि मैंने उस “एक” अल वाहिद के मुकदस मुकामत और उसकी सिफ्तों को उसकी रहमत से नाज़िल होता देखा है ॥
अगर हम और सोचें तो पता चलता है कि खुदा ने अपनी शान की शनासत (proof of Divine
existence) का इज़हार करने के लिए इंसान की ज़ात को ही चुना है ॥ इंसान के वजूद को इस लिए अशरफ -ए- मखलुकात कहा जाता है क्योंकि आदमी को ही उसने इल्हाम के काबिल समझा ताकि वोह रब का पुख्ता सबूत काएनत को दे ॥ ॥ क्योंकि रब के जितने भी अपने राज़ हैं, तारीफ है, तखलीक है, तरीकत, तरदीब या तदबीर है—इन सब का सबूत मालिक ने अपने महबूब पेगमबेरों, पीरों, मुरशिदों, औलियों, सतगुरुओं के जरिए ही जाहिर किया है॥ अपनी सिफ्तों -- वाहिद-ल--शरीक, रहमत, इश्क, मोहब्बत, शबद , नाम , कुन, कलाम-ए-इलाही, आवाज-ए मुस्तकीम का पैगाम भी अपने मुबारक पेगम्बरों के जरिए दिया, ता कि वोह दूसरे बाशिंदों को भी उसके ईमान, यकीन, इश्क, विरह और विसाल के लिए राज़ी कर सकें ॥ और हिजर की तनहायी खत्म हो सके ॥
एक दूसरी मिसाल है –इंसान के ज़िंदगी सुख -दुख की गर्दिश में रहती है,और फिर भी समझ नहीं आती, कि इस कैद-ए-हयात का मकसद क्या है ॥ एक पुरानी ग़ज़ल याद आ रही है “ऐ क़ातिब-ए-तक़दीर मुझे इतना बता दे क्यों मुझसे ख़फ़ा है तू, क्या मैंने किया है॥ औरों को खुशी मुझको फ़कत दर्द-ओ-रंज-ओ-ग़म, क्या मैंने किया है॥ केई बार आदमी इस नतीजे पर पहुंचता है कि ज़िंदगी का मसला, मकसद और मंजिल (purpose and objective) मौत को समझना है या खुदा की बंदगी और इबादत है ॥ पर मौत के बाद कोई शकस नहीं बताता कि इंसानी वजूद का सफर मुकम्मल हुआ या नहीं और क्या यह ज़िंदगी और मौत का सफर जारी रेहगा या फिर कब ज़िंदगी को अपनी मंजिल-ए मुकाम हासिल हो गया है ॥ सारी उम्र आदमी इसी जहालत में मुब्तला या फंसा रहता है ॥ हम इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि जो ज़िंदगी का फलसफा (circle of knowledge) काफी नहीं हैं॥ जो न-मलूमीयत की उलझन है, वोह इल्म या इश्क के एहसास की कमी है या the realization or
the lack of understanding ॥ इसलिए knowledge या जानकारी इल्म नहीं है— Understanding or
Realization supersedes of all forms of knowledge.
तीसरी मिसाल-- “पानी” की मालूमात और इल्म में बहुत फरक है ॥ पानी को बर्फ में जमाया जा सकता है, इसको भाप में बदला जा सकता है॥ यह बहने वली भी शेय है और पयास भी भुजायी जा सकती है ॥ यह सब मिसालें पानी कि जानकारी या मालूमात (information) देती हैं ॥ पर इल्म सवाल पैदा करता है कि पानी प्यास क्यों भुजाता है? यह hydrogen और oxygen से क्यों बना है ? अलग अलग तापमान या सर्दी- गर्मी के हलात में यह अपना वजूद क्यों बदलता है ? इतनी hydrogen और oxygen कहाँ से आती है ?? समंदर में हमेशा पानी क्यों रहता है ? पानी ज़मीन के नीचे भी क्यों पाया जाता है और अर्श पर बादल किस के हुक्म से फर्श पर बरसात करते हैं? इसलिए पानी की जाहिरी मालूमात काफी नहीं है॥ क्योंकि हर जानकारी के बाद सवाल -दर सवाल का सिलसिला ज़ारी ही रहता है॥ और हकीकत नाज़िल नहीं होती॥ इस लिए बुजुर्ग-ए-दीन ने फरमाया है जब तक रूह का रूहानी परवाज़ नहीं होता, तब तक हम मालिक की करामात और काएनत का इल्म हासिल नहीं कर सकते॥ मतलब, रूहानी इल्म( totality of understanding) हम पर नाज़िल नहीं हो सकती ॥
The concepts of
Knowledge and Understanding are distinctive. Knowledge is information. Understanding is the experience of Realizing
the knowledge gained through blessed inner contemplation either
through a mystic or as may be mandated by the Lord. Knowledge can be Googled out or researched –
but understanding, love, and faith come with personal Realization
when all the coverings of Mind and Maya cease to exist. That is the real ilm (इल्म )
खुदा अक्ल के दायरे में आ ही नहीं सकता ॥ अगर रब अक्ल के पिंजरे में बंद हो जाए तो वोह रब है ही नहीं॥ रबल-उल -आलमीन के इल्म-ओ-इश्क की हिकमत या ज्ञान रूह के सफर में ही जाना जा सकता है –जो कि-- मन, नफ़स और खुदी के दायरे से पार हो कर जाता है (where the awareness of realization is blessed) ॥ इस लिए जितनी मालूमात है वोह न-इल्मी है ॥ हर सईसंदान या फ़लसफ़ी, दानिशमंद लाज़मी तौर से मानता है कि जानकारी आगे भी बहुत मुकाम हैं॥ हर मुकाम के आगे बे-हिसाब बेअंत मुकाम है॥
रूमी और शमज़ तबरीज़ की ज़िंदगी का एक वाक़िया
इस नजरिए के सही तरीके से समझाने के लिए --रूमी और शमज़ तबरीज़ के एक वकायत पर गौर करना जरूरी है ॥
800 साल पहले जब मौलाना जलूलउदीन रूमी अपने मुरीदों को कुरान-ए पाक की ज़हीन और महीन अजमत के बारे में एक बरामेदे में समझा रहे थे, तो शमज़ तबरिज अचानक एक अजनबी की माफिक, मैले लिबास में गुस्से में आते हैं और जोर से पूछते हैं—“कि ओह मौलाना तू इन मरीदों को किस इल्म से आशना कर रहा है”॥ तब रूमी ने मुरीदों से पूछा कि यह फकीर कौन है और इसका यहाँ क्या काम है?? सारी बेठक चुप रही ॥ रूमी ने भी गुस्से से अजनबी को जवाब दिया --- “मेरा इल्म तेरी अक्ल से बाहर है॥ न ही तू इसे समझ सकता है” ॥
शमज़ भी रूमी के तीखे लफ्जों से नाराज़ हो गया॥ उसने जितनी रूमी और उस के बाप-दादा की लिखी किताबें वंहाँ मौजूद थी, बरामदे के साथ वाले पानी के तलाब में डाल दी ॥ सारी किताबें गीली हो कर तेरने लगी और सियाही के रंग ने तालाब को रंगीन कर दिया॥ रूमी हेरानी और परेशानी में चिल्लाने लगे कि इस बशर ने मेरे सारे इल्म को बरबाद कर दिया ॥ इस शोर शराबे में शमज़ उठा और तलाब में हाथ डाल कर सूखी किताबों को निकाल दिया ॥ सब सफ़े सूखे थे और सारी किताबों की लिखत अपनी असली शक्ल में थी ॥ रूमी घबरा गया और पूछा –“यह कौन सा इल्म है” ? शमज़ ने भी अपने अंदाज में जवाब दिया – यह इल्म तुम्हारी अक्ल से बाहर है ॥ यह कह कर शमज़ चला गया और गायब हो गया ॥ रूमी ने आस पास उसे ढूँढने की तलाश तो की, पर वोह सब नाकामयाब हुई॥
कहते हैं कि रूमी तीन साल के बाद शमज़ को तलाश कर सका॥ रूमी ने तब शमज़ से पूछा – हज़रत आप की तलाश में मेरे को तीन साल लग गए—यह तो बहुत ही लंबा वक्त है ---मेरा कितना वक्त बर्बाद हो गया ॥ शमज़ ने रूमी को जवाब दिया—मैंने भी तुम को ढूँढने में 20 साल का इंतजार किया है ॥
उसके बाद रूमी शमज़ तबरीज़ का मुरीद बन गया, और उनकी आपसी सोहबत, मुहबत और इश्क की कहानी सारी दुनिया में मशहूर है ॥
यह किस्सा इस लिए बयान किया गया क्योंकि जिस किताबी फलसफे या हिकमत को रूमी इल्म समझता था उसको एक खुदा के बंदे ने , यानि शमज़ तबरीज़, की सोहबत ने असल में न-इल्मी का दर्जा दे दिया ॥ किताबी फलसफा के मतलबों और तर्जमानी को तर्क कर दिया ॥ कुछ वकफ़े के बाद रूमी अपने माशरे की सोच से दूर हो गया॥ इतना दूर, कि उसके चाहने वाले पुराने मुरीद, और उसका अपना छोटा बेटा भी रूमी से खफा हो गये॥ शहर में यह बात आग की तरह फैल गई कि रूमी जो कुरान की एयतों को बहुत अदब से समझता था, अदली कानून की रहनुमायी करता था, रसूल की इबादत की तखलीक करता था,यकसर अपनी अक्ल को काफिर के हवाले कर दिया है ॥
यह मुरशिद के फ़ैज़ और अल्लाह के फजल का अंजाम था। रूमी को एहसास हो गया था कि वोह शयरीयत, तरीकत और मार्फत के दरया को पार कर हकीकत के मुकदस मुकाम में दाखिल हो गया है ॥ तासीर यह है कि एक ऊंचे दर्जे का मौलवी भी खुदा के हक़ीक़ी इल्म से महरूम रह सकता है, अगर मालिक उस पर फजल-ओ-करम न करे ॥
इश्क और वक्त का मुरशिद-ए कामिल
इल्म-ए- इश्क के सिलसिले में वक्त और जमाने के मुरशिद की रहनुमायी बहुत ही लाज़मी है ॥ सब मुबारक किताबें, अल्लाह के पेगम्बरों के ज़रिए 2000, 1500 या 500 पहले नाज़िल हुई ॥ और फिर वक्त के पीरों, औलियों, सूफ़ीओं, संतों, सतगुरुओं ने वक्ती लोगों को अपनी बानी या कलाम के जरिए उसी हकीकत को वक्त के हिसाब से बार बार पैगाम दिया ॥ क्योंकि आदमी अपनी कमजोरियों की वजऊहात से रब के इश्क के रस्ते से गुमराह हो जाता है और शिरक का शिकार हो जाता है, शरिया, करम कांड या बुतखाने की पूजा करता है ॥ रास्त-ए -मुस्तकीम को तर्क कर के बे-राही हों जाता है॥
अल्लाह की शान का राज जमाने और वक्त के हिसाब से खुलता जाता है, बुलंद होता जाता है ॥ आदमी कभी ऊँठ की सवारी करता था, कभी बेलगड़ी में सफर करता था॥ और आज खाने-पीने का अंदाज, रहने के तौर तरीके और आदतें 21सवी सदी में बदल गई हैं और आगे भी बदलती रेहेंगी ॥ यह सब बदलाव भी मालिक के हुकम से होता है॥ इसलिए मुरीदों की रूहानी रहनुमयी के लिए भी वक्त के गुरुओं और पीर ओ- मुरशिद की सोहबत और हिकमत जरूरी है ताकि वोह अपनी नूर-ए रहमत से खुदा के इश्क और विसाल की रोशनी डाल सकें ॥ रोशनी तभी मिलती है जब आदमी रोशनदार के आस पास जाता है ॥
संत तुलसी साहिब जिन का ताल्लुक हाथरस शहर से है अपने मुरीद शेख तकी को समझते हैं -“यह राहे
मंजिल
इश्क
है”( यानि रूह का रास्ता भी इश्क है और मंजिल भी इश्क है ॥)
मनसूर सरमद बूअली, और शम्स मौलाना हुए// पहुंचे सभी इस राह से जिस ने की दिल पुख्ता किया/
/फिर लिखते है – ओह खुदा के बंदे --
क्यों भटकता फिर रहा तू ऐ तलाशे यार में॥
मुर्शिदे कामिल से मिल सिदक और सबूरी से “तकी”॥
गोशे बातिन हो कुशादा जो करे कुछ दिन अमल॥
ला इलाह अल्लाहू अकबर पै जाने के लिए॥
محبت کے مقام پر
تعیALن
کے دعوے
محبت
واقعی علم ہے !!
روحانی
نخت نزار سے سمجھنے کی خواہش محبت سے ہے۔ اس طرح کی محبت کا تعلق خدا کے ساتھ
"ایک" بننا یا توحید کا تجربہ حاصل کرنا ہے۔ کائنات کا باقی علم یا
تربیت یا علم و فہم صرف معلومات کے دائرے میں آتا ہے۔ جب تک کہ انسان کی روح پر اس
طرح کی محبت حقیقت کے جملے سے نہیں گزرتی ، تب تک علم میں ہمیشہ نیفی رہے گی۔ جب ،
بابا بلھے شاہ نے کہا - Ilam
kamono yar، Iko alif tere darkar - ان کا اشارہ دنیا کی تعلیم کے ساتھ استدلال کرنا
تھا اور اللہ کے دین میں شامل ہونا تھا۔ حضرت سلطان باھو یہ بھی کہتے ہیں - عشق
اکل وڑ منجل بھاری سو کوہن دی پیڈ ھو ، کون پیار نہیں کرتا ، اوہ دونوں جہانی میری
ہو۔ عشق کے پیمانے پر عشق کی کوشش نہیں کی جا سکتی۔
لا
الہ الا اللہ کا معنی یہ ہے کہ خدا یا رب کے سوا کوئی نہیں جو فکر کے مرحلے سے پرے
ہو۔ وہ وحید الشریف ہے ، یہ توحید ہے ، اور باقی سب کچھ خودی یا دلیت یا دوزہ بت
پرستی کا وہم ہے۔ اکو ، الواحد ، واہگورو ، نربھاؤ ، نرویر ، اجونی ، پرماتما ،
ایشور ، رحمن ، کریم ، رحیم ، غفار ، رزاق ، عزیز ، حکیم ، حکیم ، جبار ، العدل —
وغیرہ کے مالک کے تمام سیفنان ہیں۔ مالک کی خصوصیات کا علم یا علم؟ لیکن اصل علم
یہ ہے کہ جب کوئی شخص واقعتا یہ دعویٰ کرسکتا ہے کہ میں نے اس "ایک"
الواحد کے مقدادس مقدس کو دیکھا ہے اور اس کی رحمت سے اس کی برکتیں نازل ہوتی ہیں۔
اگر
ہم مزید غور کریں تو معلوم ہوتا ہے کہ خدا نے خدائے وجود کے ثبوت کے اظہار کے لئے
نسل انسانی کا انتخاب کیا ہے۔ انسان کے وجود کو اشرف المخلوقات کہا جاتا ہے کیونکہ
وہ انسان کو علم کے قابل سمجھتا تھا تاکہ وہ کائنات کو رب کا ٹھوس ثبوت دے سکے۔ .
کیونکہ رب کے پاس اپنے تمام راز ، حمد ، تکلک ، ترقیت ، تجریب یا تدبیر ہیں-یہ
سارے ثبوت آقا نے اپنے پیارے نبیوں ، پیروں ، مرشدوں ، اولیس ، ستگورس کے ذریعہ
انکشاف کیے ہیں۔ انہوں نے اپنے مبارک انبیاء کے توسط سے وحید الشریق ، رحمت ، عشق
، محب ،ت ، شابد ، نام ، کن ، کلام الٰہی ، آواز مصطیم کا پیغام بھی دیا تاکہ وہ
دوسرے باشندوں تک بھی پہنچ سکے۔ اس کے ایمان ، اعتماد ، محبت ، علیحدگی اور وژن کے
ل him اس
کو راضی کرنے کے قابل اور ہوسکتا ہے کہ ہجر کی تنہائی ختم ہوجائے۔
اس
کی ایک اور مثال ہے۔ انسان کی زندگی خوشی اور غم کے درمیان زندگی بسر کرتی ہے ،
اور پھر بھی سمجھ نہیں آتی ہے کہ اس جیل حیات کا مقصد کیا ہے۔ مجھے ایک پرانی غزل
یاد آتی ہے ، "اے قطب تقدیر ، مجھے بتاؤ تم مجھ سے ناراض کیوں ہو ، میں نے
کیا کیا؟ دوسروں کی خوشی ، مجھ کو تکلیف ، درد و درد درد ، کیا میں نے کیا؟ کبھی
کبھی انسان اس نتیجے پر پہنچتا ہے کہ زندگی کا مقصد ، مقصد اور منزل موت کو سمجھنا
ہے یا یہ خدا کی عبادت اور عبادت ہے۔ لیکن موت کے بعد کوئی شک نہیں کہ انسان کے
وجود کا سفر مکمل ہے یا نہیں اور زندگی اور موت کا یہ سفر جاری رہے گا یا جب زندگی
اپنی منزل مقصود ہو چکی ہے۔ پوری زندگی انسان اس حالت میں پھنس جاتا ہے یا پھنس
جاتا ہے۔ ہم اس نتیجے پر پہنچے ہیں کہ علم کا دائرہ کافی نہیں ہے۔ وہی جو نون
ملومیت کی الجھن ہے ، وہی احساس کا فقدان یا عقل کا فقدان۔ لہذا علم یا معلومات
علم نہیں ہے all ہر
طرح کے علم کو سمجھنے یا سمجھنے سے بالاتر ہے۔
تیسری
مثال - "پانی" کے علم اور جانکاری کے درمیان بڑا فرق ہے۔ پانی برف میں منجمد
ہوسکتا ہے ، اسے بھاپ میں تبدیل کیا جاسکتا ہے۔ یہ وہی ہے جو بہتی ہے ، اور پیاس
بھی ڈوب سکتی ہے۔ ان تمام مثالوں سے پانی کے بارے میں معلومات یا معلومات ملتی
ہیں۔ لیکن علم یہ سوال اٹھاتا ہے کہ ، پانی کیوں پیاس بجھا رہا ہے؟ یہ ہائیڈروجن
اور آکسیجن سے کیوں بنا ہے؟ یہ مختلف درجہ حرارت یا سردیوں کی گرمیوں کے حالات میں
اپنے وجود کو کیوں تبدیل کرتا ہے؟ اتنا ہائیڈروجن اور آکسیجن کہاں سے آتی ہے؟ کیوں
ہمیشہ سمندر میں پانی ہے؟ زمین کے نیچے بھی پانی کیوں پایا جاتا ہے اور فرش پر
بادل کس کے حکم پر برستے ہیں؟ لہذا پانی کی واضح دستیابی کافی نہیں ہے۔ کیوں کہ ہر
معلومات کے بعد سوال و جواب کا عمل جاری رہتا ہے۔ اور حقیقت سامنے نہیں آتی۔ اسی
لئے بزرگ الدین نے کہا ہے کہ جب تک روح کی روحانی دعا نہ ہو ہم آقا کے جادو اور
طاقت کا علم حاصل نہیں کرسکتے ہیں۔ جس کا مطلب بولوں: روحانی علم (تفہیم کی
مجموعی) ہم پر ظاہر نہیں ہوسکتا۔
علم
و تفہیم کے تصورات مخصوص ہیں۔ علم ہی معلومات ہے۔ افہام و تفہیم کا تجربہ ہے
بابرکت داخلی فکر کے ذریعے حاصل کردہ علم کو یا تو ایک صوفیانہ کے ذریعہ یا خداوند
کے ذریعہ لازمی قرار دیا گیا ہے۔ علم کو آگے بڑھایا جاسکتا ہے یا تحقیق کی جاسکتی
ہے - لیکن تفہیم ، محبت اور ایمان ذاتی احساس کے ساتھ اس وقت آتے ہیں جب دماغ اور
مایا کے سارے پردے باقی رہ جاتے ہیں۔ یہی اصل امت ہے
خدا
حکمت کے دائرے میں نہیں آسکتا۔ اگر رب حکمت کے پنجرے میں بند ہے ، تو وہ رب نہیں
ہے۔ ربیع الاعظمین کے علم الا عشق کی حکمت یا جانکاری صرف روح کے سفر ہی میں معلوم
ہوسکتی ہے۔ جو دماغ ، نفس اور خودی کے دائرے سے آگے بڑھ جاتی ہے (جہاں بیداری کا
شعور بابرکت ہوتا ہے)۔ اس وجہ سے ، جو کچھ بھی معلوم ہے وہ غیر الہامی ہے۔ ہر
فلسفے یا فلسفے ، شیطان کا واضح طور پر یقین ہے کہ آگے بہت ساری معلومات موجود
ہیں۔ ہر مرحلے کے سامنے غیر حساب کتاب ہے۔
رومی
اور شماز تبریز کی زندگی کا ایک واقعہ
اس
نقطہ نظر کو صحیح طریقے سے سمجھنے کے لئے ، رومی اور شماز تبریز کی کسی شکایت کو
نوٹ کرنا ضروری ہے۔
800 برسوں پہلے ، جب مولانا جلالدین رومی ایک
برنڈی میں اپنے پیروکاروں کو قرآن پاک کی عمدہ اور عمدہ برکتوں کے بارے میں وضاحت
دے رہے تھے ، شماز تبریز اچانک غصے میں آگئے ، اجنبی لباس پہنے ہوئے ، گندے کپڑے
پہنے اور اونچی آواز میں پوچھا "۔ او مولانا کیا علم کے ساتھ ان مردہ کی توقع
کر رہے ہو؟ " تب رومی نے مداحوں سے پوچھا کہ یہ فقیر کون ہے اور یہاں اس کا
کیا کام ہے؟ پوری میٹنگ خاموش تھی۔ رومی نے غصے سے اجنبی کو بھی جواب دیا -
"میرا علم آپ کی سمجھ سے بالاتر ہے۔ اور نہ ہی آپ اسے سمجھ سکتے ہیں۔ "
شماز بھی رومی کی تیز باتوں سے ناراض ہوگیا۔
اس نے رومی اور اس کے والد اور دادا کی لکھی ہوئی تمام کتابیں برآمدہ سے متصل پانی
کی ٹینکی میں ڈال دیں۔ ساری کتابیں گیلی ہوگئیں اور تیرنے لگیں اور سیاہی کا رنگ
تالاب میں رنگ گیا۔ رومی نے حیرت اور پریشانی میں چیخنا شروع کیا کہ اس بشار نے
میرا سارا علم برباد کردیا ہے۔ اس شور مچانے پر شماز اٹھ کھڑا ہوا اور تالاب میں
ہاتھ رکھ کر خشک کتابیں نکالیں۔ سارے گورے خشک تھے اور ساری کتابوں کی تحریریں
اپنی اصلی شکل میں تھیں۔ رومی نے گھبراتے ہوئے پوچھا - "یہ کیا علم ہے؟"
شماز نے بھی اپنے انداز میں جواب دیا - یہ علم آپ کے حواس سے باہر ہے۔ یہ کہتے
ہوئے شماز وہاں سے چلا گیا اور غائب ہوگیا۔ رومی نے اسے قریب ڈھونڈنے کی کوشش کی ،
لیکن یہ سب ناکام رہا۔
کہا جاتا ہے کہ رومی تین سال کے بعد شماز کو
ڈھونڈنے میں کامیاب رہا۔ رومی نے پھر شماز سے پوچھا - مجھے آپ کو ڈھونڈنے میں تین
سال لگے۔ یہ ایک بہت طویل وقت ہے - کتنا وقت ضائع ہوا۔ شماز نے رومی کو جواب دیا -
میں نے بھی آپ کو ڈھونڈنے کے لئے 20 سال انتظار کیا ہے۔
اس کے بعد رومی شماز تبریز کی مداح ہوگئیں ،
اور ان کے باہمی پیار ، محبت اور پیار کی کہانی پوری دنیا میں مشہور ہے۔
اس داستان کو اس لئے بیان کیا گیا کہ کتابی
فلسفہ یا حکمت جو رومی کو علم سمجھا جاتا تھا ، در حقیقت خدا کے ایک دوست ، یعنی
شماز تبریز نے ، اس کی انجمن کے ذریعہ ، غیر الہامی کا درجہ دیا تھا۔ ….….….….…
کتابی فلسفہ کے معنی اور نمونہ پر بحث کی۔ کچھ وقف کے بعد رومی اپنے مکر کی سوچ سے
دور ہوگئی۔ ابھی تک ، کہ اس کے پیارے ، بوڑھے پرستار ، اور یہاں تک کہ اس کا اپنا
چھوٹا بیٹا رومی سے ناراض ہوگیا۔ یہ لفظ شہر میں آگ کی طرح پھیل گیا کہ رومی ، جو
قرآن کی آیات کو بہت اچھی طرح سمجھتی تھیں ، قانون شریعت کی پیروی کرتی تھیں ،
رسول کی عبادت کی نماز پڑھتی تھیں ، اور اکثر اپنا ذہانہ کافروں کے حوالے کرتے
تھے۔ ….….….….….…
یہ مرشد کے فیض اور اللہ کے فضل کا نتیجہ
تھا۔ رومی کو اندازہ ہوچکا تھا کہ وہ شریعت ، طریقت اور مراٹھا کا راستہ عبور کرکے
حقیقت کے دائرے میں داخل ہوا ہے۔ اس کا اثر یہ ہے کہ اگر ایک اعلی درجے کا عالم
بھی خدا کے حقیقی علم سے محروم ہوسکتا ہے ، اگر آقا اس پر فضل الکرم نہیں ادا کرتا
ہے۔
عشق اور وقت کا مرشدِ کامل
عالم عشق کے سلسلے میں ، وقت اور عمر کے
مرشد کی رہنمائی بہت ضروری ہے۔ تمام مبارک کتابیں اللہ کے نبیوں نے 2000 ، 1500 یا
500 قبل نازل کیں۔ اور پھر پیر ، اولیس ، صوفیاء ، اولیاء ، ستگورس نے اپنی بنی یا
کالام کے ذریعہ ، وقت کے مطابق بار بار یہی حقیقت بیان کی۔ کیونکہ انسان اپنی
کمزوریوں کی وجہ سے خداوند سے محبت کے راستے سے گمراہ ہوجاتا ہے اور عبادت کا
نشانہ بن جاتا ہے ، شریعت ، کرم قند یا مذبح خان کی پوجا کرتا ہے۔ استدلال کرکے
راحت مصطفی غیر موثر ہوجاتا ہے۔
اللہ کی عظمت کی بادشاہی وقت اور وقت کے
ساتھ کھل جاتی ہے ، یہ بلندی سے بلند ہوتی ہے۔ انسان اونٹ پر سوار ہوتا تھا ، کبھی
کبھی بیلگڈی میں بھی سفر کرتا تھا۔ اور آج 21 ویں صدی میں کھانے پینے کا انداز ،
زندگی گزارنے کا طریقہ اور عادات بدل چکی ہیں اور اور بھی بدلے گی۔ یہ ساری تبدیلی
مالک کے حکم سے بھی ہوتی ہے۔ لہذا ، یہ ضروری ہے کہ مریدوں کے روحانی ساتھی بھی
زمان کے پیروں اور پیر مرشد کی صحبت اور دانشمند ہوں تاکہ وہ اپنی نور رحمت کے
ساتھ خدا کی محبت اور عظمت کا نور روشن کرسکیں۔ روشنی تبھی ملتی ہے جب انسان روشنی
کے قریب جاتا ہے۔
سینت تلسی صاحب ، جو ہاتراس شہر سے تعلق
رکھتے ہیں ، اپنے مداح شیخ تقی کو سمجھتے ہیں۔
منصور ، سرمد بولی ، اور شمس مولانا بن گئے
// سب اس راستے پر پہنچ گئے جس نے دل کو مضبوط کیا // پھر لکھتے ہیں - اوہ خدا کی
بندے -
آپ انسان کی تلاش میں کیوں بھٹکتے رہے؟
مل سیدک مرشد کامل سے اور "تکی"
سبوری سے۔
گوشے باتین ہو کشادا ، جو کچھ دن تک کرتا
ہے۔
لا الہ الا اللہ اکبر پائی جانا
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