ABOUT DREAMS
ख्वाबों के कुछ खयाल-जो नींद में आते हैं
خوابوں کے کچھ خیالات-
(SOME THOUGHTS ON DREAMS IN SLEEP)
सुपने की रहमत-ए- नियामत से अल्लाह पाक ने इंसानी जमात को चार खास राज़ से आशना कर दिया॥ मसलन 1) दुनिया झूठी है 2) ज़माना-ओ-मकान ( time and space) का एहसास वहम है 3) खुदा के विसाल के लिए काएनत की हसरत का तर्क करना पड़ेगा और 4) इश्क में ही वहदत का दरवाजा खुलता है
==============================================================
नींद में ख्वाब क्यों आते है??
खुदा ने इंसान में खाबों की तदबीर को क्यों शुरू किया ? ज़िंदगी में सुपनों की क्या अहमियत है ?? कोई इंसान यह भी नहीं कह सकता कि उसने कभी ख्वाब देखा ही नहीं ॥ यह भी जरूरी नहीं है कि हर नींद में सुपना आए॥ मसला यह नही है कि ख्वाब सच होते हैं या झूठ होते हैं
–पर सवाल यह है कि रब ने इंसान को ऐसी नियामत किस लिए दी है ॥
केई मजहबी ईदारों में सुपने को खुदा का रूहानी इल्हाम माना जाता है जो कि किसी मुकदस मुकाम से रूह को मिलता है॥ पर यह अंदाज सिर्फ सूफी तबीयत वाले लोगों के लिए लगाया जाता है,
जिनको वहदत की तलाश हो या वोह वहदत के सफर में हों ॥ आमतौर पर नफ़सानी या मनमुख लोगों के लिए यह एक न-समझी का झमेला ही है जो कि बहुत भ्रम और वहम पैदा करता है ॥
अगर सुपना गैब या रूहानी या मुरशिद-ए -कामिल के दीदार का है तो बहुत ही मुबारक वाक्य है ॥ पर खतरा यह है कि
कहीं इसकी तासीर, तुकबर या गरूर में न बदल जाए कि में बहुत खुदापरस्त इंसान हूँ॥ दूसरी
तरफ अगर सपना डर या खोफ़ो - खतरे का है , तब या
तो बंदा कमजोर पड़ सकता है, और कभी होसला बुलंद
भी हो सकता है बुरे हालात से लड़ने के लिए ॥
क्या जानवर या दूसरी जूनियाँ भी ख्वाब से मुखातिब हैं
?? इस के बारे में भी बहस हो सकती है
–पर कोई भी दावे से इस मजमून पर हकीकत वाजिब नहीं कर सकता ॥
सुपने में इंसान को सब सच लगता हैं ॥ पर हालात यानि ज़माना-ओ-मकान
( time and space configuration) बिल्कुल अजीब होती हैं॥ केई बार सालों की कहानी कुछ पल
(स्किनटों या मिनटों)
में देखी जा सकती है ॥ “Dream time”
of a few second can compress even a life time or more. रोशनी और आवाज की रफ्तार( स्पीड), या कंपन (vibrations) भी अलग तरह से होती है ॥ जिस पेमाने को हम दुनिया में मुतलक़ (absolute) या (non -variable) समझते हैं उसकी पेमाइश और गिनती बदल जाती है ॥
देखने में हर शे single dimension में नजर आती है , जब कि वोह multiple dimension होती है॥ ख्वाब में देखने के लिए यह बहारली आँख काम नहीं करती और सुनने के लिए यह बहारले कान भी बंद रहते हैं ॥ रोशनी भी अजीब होती है ॥ महसूस ऐसे होता है कि कोई हेरान कुन वाक्य गुजर रहा हो ॥ दिल की धड़कन और दिमागी हालत भी बदल जाती है ॥ होश, एहसास, शूर कि भी खबर एक नए अंदाज में होती है ॥ इतनी तेजी से नज़ारे बदलते हैं और हम उन पर काबू नहीं पा सकते हैं और न ही इन पर कोई इख्तियार होता है ॥ आदमी की तबीयत बे-खबर होती है॥
एक फलसफे के नजरिए के मुताबिक से-- जब हमारी हिस, होश, फ़हम ( sensual
perception) नींद में मुब्तला हो जाती है तो रूह के ऊपर पड़े अच्छे- बुरे अम्लों के गिलाफ़ों का एहसास एक रूहानी अंदाज में होता है—(
spiritual or intuitive experience of layers of
karmic paraphernalia covering the soul are revealed as a mystical phenomenon )॥ रूह पर चड़े हुए संस्कार या impressions की ताबीर (interpretations) भी रूहानी सलाहियत ( spiritual faculties) के जरिए से ही हो सकती है॥ पर हमारी नफसी सलाहियत (mental faculties or finer
faculties of mind), होश आने पर इस का तर्जमा नहीं कर पाती और इस लिए हम इन वाकयात का मन के जज़्बातों और जनून के हिसाब से अंदाजा लगाना शुरू कर देते हैं ॥
ख्वाब में शकस अपने आप को जगा हुआ महसूस करता है पर असलियत में गहरी नींद में होता है॥ ख्वाब में जगते होने का एहसास एक अहमकाना खयाल है क्योंकि खवाबी की तवजू सुपने में ही है ॥ अगर कोई आदमी किसी दूसरे शकस, बजुरुग, रिश्तेदार का ख्वाब देख रहा होता है, तो उनको मालूम ही नहीं होता कि वोह किसी दूसरे के सुपने में नजर आ रहे हैं ॥ मान लो कि किसी आशिक ने अपनी मेहबूबा का सपना देखा, पर मेहबूबा इस वकये से न-वाकिफ रहती है॥ किसी का accident हो गया या मौत हो गई, सांप लड़ गया , पहाड़ से गिर गया या पानी में डूब गया --- इस की सचायी तो सुपने से बाहर आने से ही होती है॥ अगर किसी की कोई मुराद या दुआ ख्वाब में कबूल हुयी है तो यह सारे तजरबे की आजमाइश होशो हवास में ही हो सकती है ॥ Mirage या सराब, जैसे जागते इंसान का वहम है, वैसे ही सुपना एक मिसाल है जो की नींद में जाहिर होती है ॥
संत महातमा लोग कहते हैं कि ख्वाब का कारनामा metaphorical है – यानि यह दुनिया एक ख्वाब के मानिंद है ॥ इस की कोई सचायी नहीं है ॥ और रब ने अपनी खलक्त को ऐसी हकीकत को समझाने के लिए ख्वाब के करिश्मे कि झलक दिखला दी ॥ हे बंदे तू समझ ले जो असलियत नजर आती है वोह धोखा या वहम है—जेआदतर मन के फरेब का अंदाज होता है ॥ सच तो यह है जब सब शे बदलाव की गर्दिश में है और फ़ना की तरफ सफर कर रही है और जो मजूद नजर आता है उसका वजूद भी खाकी ही है ॥
मिसाल के लिए “फिल्मी दुनिया” को भी एक ख्वाब से compare कर सकते हैं॥ किरदारों की असलियत बनावटी है , पर देखने वाले दो-तीन घंटों के लिए इसे एक सची तरकीब मान लेते हैं॥ किरदारों के साथ रोते और हँसते भी हैं ॥ झूठ और बातिल को हकीकत की पौषक पहनना डायरेक्टर की कला है ॥
·
गुरु तेग़ बहादुर जी कहते हैं जिउ सुपना अरु पेखना ऐसे जग कउ जानि ॥ ज़िंदगी के सुख- दुख, नफा- नुकसान, हार जीत, माल-ओ दौलत, गरीबी- अमीरी सब एक ख्वाब के मानिंद हैं ---सब बदलाव की गर्दिश में खाक हो जाते हैं ॥ गुरु नानक साहिब ने दुनिए के सारे साजो समान को “कूड़” कह कर समझाया है ॥ कूड़ि कूड़ै नेहु लगा विसरिआ करतारु ॥ मतलब कि इंसान ने दुनिया की खाक से दिल लगा कर अलहा की इबादत को विसार दिया है और जो “मजूद” है , हक है उसको को तर्क कर दिया है ॥
· मियां मुहम्मद बख्श –एक सूफी कहता हैं –सपने विच मेनू माही मिलेया, मैं पा लयी गल विच बावाँ॥ डर दे मारे अख न खोलयां फिर बिछड़ न जाँवां ॥ साहिब कबीर साहिब कहते हैं -- सुपने में सांइ मिले सोवत लिया लगाए, आंख न खोलूं डरपता मत सपना है जाए—जब मेरे को अपनी होश नहीं थी तो मैं खुदा के नूर से आशकार हो गया और अगर मैं होश में आ जायों तो मेरे को उसके दीदार का हिजर हो सकता है॥ राबिया बासरी ( 718-801AD) जो एक बहुत ऊपर दर्जे की सूफी औरत थी --- उसको बहुत से इल्हाम ख्वाब में आते थे॥ इस्लाम और इसायी दीन में ख्वाब की ताबीर को खुससीयत से बताया जाता है ॥
अगर हम ऊपर वाली दोनों मिसलाओं को गौर से compare करें --- एक मुकाम पर ख्वाब की ताबीर दुनियावी झूठ के मानिंद है ॥ दूसरे मुकाम पर सुपने की ताबीर मुकदस –खुदा के दीदार के मानिंद है ॥ यह सब नुक्त-ए नजर का खेल है॥ पहली मिसाल मनमुख लोगों के लिए है ; जब कि दूसरी मिसाल रूहानी लोगों के लिए है ॥
गुरबानी में गुरु अर्जन देव जी का शब्द है –जो मांगे ठाकुर अपने से सोई सोई देवे ॥ नानक दास मुख से जो बोले ईनहा उन्हा सच होवे॥ मुरीद की हर खाविश तो खुदा जाहिर रूप में इस ज़िंदगी में पूरी नहीं कर सकता ॥ क्योंकि मुकदर अटल है॥ इस लिए या तो वोह ख्वाब में पूरी हो सकती हैं और या फिर 84 के चक्कर में अलग अलग भोग और करम जूनियों में ॥ आपे
बीजे आप ही खा, नानक हुकमी आवे जा॥ आदमी को जिस शे की चाहत है, वह रब के हुक्म
के हिसाब से वक्त के मुताबिक मिलती ही रहेगी॥
और ज़िंदगी के सुख-दुख का सफर चलता रहेगा--- पर निजात हासिल नहीं होगी और अनल-हक का
एहसास नहीं होगा ॥
हिन्दी फिल्म “सिलसिला” का एक गाना है – “ देखा एक ख्वाब तो यह सिलसिले हुए॥ फूल भी हो दरमियान तो फासले हुए॥
अगर इस खिते को वहदत की नजर से समझा जाए, तो आशिक और माशूक को एक होना की मंज़र सिर्फ ख्वाब जैसे हालात में ही हो सकती है॥ अगर थोड़ी सी भी फासले हों, तो इश्क अपनी पाकीज़गी खो देता है ॥ यहाँ पर ख्वाब को सिर्फ इंसानी ख्वाब की तामीर या तरुजमानी नहीं देनी चाहीये --- बल्कि रूह का वोह सरूर जब कि मन को दुनिया,दीन की होश या हसरत नहीं होती, बिरह और हिजर ला-तालुक हो जाते हैं । अंश और अंशी आपस में जज़्ब हो जाते है ॥ द्वेत से अद्वैत या तवहीद में दाखिल हो जाते हैं॥
सुपने की रहमत-ए- नियामत से अल्लाह पाक ने इंसानी जमात को चार खास राज़ से आशना कर दिया॥ मसलन 1) दुनिया झूठी है 2) ज़माना-ओ-मकान ( time and space) का एहसास वहम है 3) खुदा के विसाल के लिए काएनत की हसरत का तर्क करना पड़ेगा और 4) इश्क में ही वहदत का दरवाजा खुलता है
خوابوں
کے بارے میں
خوابوں
کے کچھ خیالات۔ وہ جو نیند میں آتے ہیں
(نیند میں خوابوں پر کچھ سوچیں)
نیند کی
برکت سے اللہ پاک نے انسانی برادری کو چار خصوصی راز سے نوازا۔ مثال کے طور پر) 1)
دنیا باطل ہے ، 2) وقت اور جگہ کا احساس بیکار ہے۔ 3) کائنات کی خواہش خدا کی شان
کے لئے استدلال کرنا پڑتی ہے اور 4) موت کا دروازہ صرف محبت میں کھلتا ہے۔
================================================== ==
=============
نیند میں
خواب کیوں آتے ہیں؟
خدا نے
انسانوں میں خوابوں کا نظارہ کیوں شروع کیا؟ زندگی میں خوابوں کی کیا اہمیت ہے؟
کوئی آدمی یہ تک نہیں کہہ سکتا کہ اس نے کبھی خواب نہیں دیکھا ہوگا۔ یہ بھی ضروری
نہیں ہے کہ ہر نیند میں سو جانا چاہئے۔ مسئلہ یہ نہیں ہے کہ خواب سچے ہیں یا جھوٹے
- لیکن سوال یہ ہے کہ رب نے انسان کو ایسی نعمتیں کیوں عطا کیں؟
کچھ
مذہبی صحیفوں میں ، نیند کو خدا کا روحانی علم سمجھا جاتا ہے ، جو کسی وقت روح کو
مل جاتا ہے۔ لیکن یہ تخمینہ صرف صوفی صحت کے لوگوں کے لئے کیا گیا ہے ، جو خوشی کی
تلاش میں ہیں یا وہ ایمان کے سفر میں ہیں۔ عام طور پر نفسانی یا منمخ لوگوں کے لئے
یہ ایک غلط فہمی ہے جو بہت زیادہ الجھنوں اور الجھنوں کو پیدا کرتی ہے۔
اگر خواب
گااب یا روحانی یا مرشد کامل کے دیدار کا ہے تو یہ بہت خوش کن جملہ ہے۔ لیکن خطرہ
یہ ہے کہ یہ اس کے لہجے ، شاعری یا گورور میں تبدیل نہیں ہوسکتا ہے کہ میں ایک بہت
ہی پرہیزگار انسان ہوں….….….….… دوسری طرف ، اگر خواب خوف یا خطرہ کا ہوتا ہے ، تو
یا تو وہ شخص کمزور ہوسکتا ہے ، اور بعض اوقات وہ خراب صورتحال سے لڑنے کے لئے بھی
اتنی ہمت کا مظاہرہ کرسکتا ہے۔
کیا
جانور یا دوسری مخلوق بھی خوابوں کی نمائندگی کرتی ہے؟ اس بارے میں بھی بحث ہوسکتی
ہے - لیکن کوئی بھی اس دعوے کے ساتھ اس مسئلے پر حقیقت کا جواز پیش نہیں کرسکتا۔
ایک شخص
خواب میں ساری حقیقت کو محسوس کرتا ہے۔ لیکن صورتحال یعنی وقت اور جگہ کی ترتیب
بالکل عجیب ہے۔ کبھی کبھی سالوں کی کہانی چند لمحوں (سکنٹنس یا منٹ) میں دیکھی
جاسکتی ہے۔ کچھ سیکنڈ کا "خواب وقت" زندگی یا اس سے زیادہ کو بھی سکیڑ
سکتا ہے۔ روشنی اور آواز کی رفتار ، یا کمپن بھی مختلف ہیں۔ ہم جس پیمانے کو ہم دنیا
میں مطلق یا غیر متغیر سمجھتے ہیں ، اس کی پیمائش اور گنتی میں بدلاؤ آتا ہے۔
ہر پہلو
ایک ہی جہت میں ظاہر ہوتا ہے ، جبکہ یہ ایک سے زیادہ جہت ہوتا ہے۔ خواب میں دیکھنے
کے لئے ، یہ بیرونی آنکھ کام نہیں کرتی ہے ، اور سننے کے لئے ، یہ بیرونی کان بھی
بند ہوجاتے ہیں….….….…. روشنی عجیب ہے ایسا لگتا ہے جیسے کوئی کوئی جملہ گزر رہا
ہو۔ دل کی دھڑکن اور ذہنی حالت بھی بدل جاتی ہے۔ یہاں تک کہ شعور ، احساس ، شور کی
بھی خبریں ایک نئے انداز میں واقع ہوتی ہیں۔ مناظر بہت تیزی سے بدلتے ہیں اور ہم
ان پر قابو نہیں پا سکتے ہیں ، اور نہ ہی ہم ان پر کوئی کنٹرول رکھتے ہیں۔ اس شخص
کی طبیعت ناواقف ہے۔
فلسفیانہ
نقطہ نظر سے - جب ہمارا جنسی احساس نیند میں ڈوبا ہوا ہے ، تو ہم روحانی طریقے سے
روح پر پڑے اچھ andے اور برے تیزابوں کے
لفافے محسوس کرتے ہیں۔ بطور صوفیانہ رجحان) روح پر نقوش یا تاثرات کی ترجمانی بھی
صرف روحانی فیکلٹیوں کے ذریعہ کی جاسکتی ہے۔ لیکن جب ہماری ذہانت آتی ہے تو ہماری
ذہنی فکرمندیاں یا ذہنی فکرمندانہ فکرمندیاں اس کی ترجمانی نہیں کرسکتی ہیں اور
اسی وجہ سے ہم ان واقعات کا اندازہ دماغ کے جذبات اور جذبات کے مطابق کرنا شروع
کردیتے ہیں۔
شکوس خوابوں
میں بیدار ہوتا ہے لیکن حقیقت میں وہ گہری نیند میں ہے۔ خواب میں زندہ رہنے کا
احساس ایک اہم سوچ ہے کیونکہ خواب کی توجہ صرف نیند میں ہی ہے۔ اگر انسان کسی اور
مشتبہ ، بزرگ ، رشتہ دار ، کا خواب دیکھ رہا ہے تو اسے یہ تک نہیں معلوم کہ اسے
کسی اور کے خواب میں دیکھا جا رہا ہے۔ فرض کیجئے کہ ایک عاشق نے اپنے عاشق کا خواب
دیکھا ہے ، لیکن محبوبہ کو اس واقعے کا علم نہیں ہے۔ کوئی حادثہ کا شکار ہو گیا یا
اس کی موت ہوگئی ، سانپ لڑ گیا ، پہاڑ سے گر گیا یا پانی میں ڈوب گیا --- اس کی
حقیقت نیند سے باہر آنے کے بعد ہی معلوم ہوسکتی ہے۔ اگر کسی کی خواہش یا دعا کو
خواب میں قبول کرلیا گیا ہے تو ، اس سارے تجربے کو صرف حواس میں آزمایا جاسکتا ہے۔
مرجع یا سارب ، جیسا کہ جاگتے ہوئے شخص کا بھیس ہے ، اسی طرح خواب ایک ایسی مثال
ہے جو نیند میں ظاہر ہوتا ہے۔
سینٹ
مہاتما کے لوگ کہتے ہیں کہ خواب کا عمل استعاراتی ہے - یعنی یہ دنیا خواب کی طرح
ہے۔ اس کی کوئی حقیقت نہیں ہے اور خداوند نے اپنے عاشق کو ایسی حقیقت بیان کرنے
کیلئے خواب کے دلکشی کی جھلک دکھائی ہے۔ ارے یار ، آپ سمجھ گئے کہ جو حقیقت نظر
آتی ہے وہ دھوکہ دہی ہے یا وہم - یہ زیادہ تر ذہن کے دھوکے کا خیال ہے۔ سچ تو یہ
ہے کہ جب ہر چیز تبدیلی کے در پر ہے اور فنا کی طرف سفر کررہی ہے ، اور جو بھی
موجود دکھائی دیتا ہے وہ خاکی بھی ہے۔
مثال کے
طور پر ، آپ خوابوں سے "فلمی دنیا" کا موازنہ بھی کرسکتے ہیں۔ کرداروں
کی حقیقت مصنوعی ہے ، لیکن دو تین گھنٹوں کے لئے ، دیکھنے والے اسے ایک حقیقی چال
سمجھتے ہیں… ..….….….… کونسا کرداروں کے ساتھ رونا اور ہنسنا جھوٹ اور حقیقت کو
حقیقت کے مطابق ٹھکانے لگانا ڈائریکٹر کا فن ہے۔
• گرو تیغ
بہادر جی کہتے جیؤ سُپرنا اڑو پیکنا آیس جگ کاؤ جانی زندگی کی خوشیاں اور غم ، نفع
و نقصان ، شکست ، جیت ، دولت و دولت ، غربت سے مالا مال یہ سب ایک خواب کی طرح
ہیں۔ سب تبدیلی کی گرج میں فنا ہوجاتے ہیں۔ گرو نانک صاحب نے "جنک" کہہ
کر دنیا کے تمام سازوسامان کی وضاحت کی ہے۔ لگائیں اس کا مطلب ہے کہ انسان نے اپنے
دل سے دنیا کو الوداع کہا ہے۔ میں نے عبادت کو اہمیت دی ہے اور
اس سے استدلال کیا ہے جو "موجود" ہے اور اس کا حق ہے۔
• میاں
محمد بخش a ایک صوفی کہتے ہیں - سپنے وچ مینو مہی
ملیہ ، مرکزی پل گِل وِچ باون۔ خوف کی وجہ سے آنکھیں نہ کھولیں ، پھر الگ نہ ہوں۔
صاحب کبیر صاحب کہتے ہیں - سوئے سائیں میل سوات لیئے لگے ، آنکھیں نہ کھولیں ،
خوفزدہ نہ ہوں ، خوفزدہ نہ ہوں - جب مجھے ہوش نہیں تھا ، میں خدا کی روشنی سے سحر
طاری ہوگیا اور اگر میں نے اپنے حواس کو دوبارہ حاصل کیا اس کا نظارہ حجijر ہوسکتا ہے۔ رابعہ بصری (718-801 ع) جو ایک بہت ہی اعلی درجہ
کی صوفی عورت تھی --- اسے خوابوں میں بہت سے الہام آتا تھا۔ اسلام اور عیسائی مذہب
میں خوابوں کا خواب اچھی مرضی کے ساتھ بتایا جاتا ہے۔
اگر ہم
مذکورہ بالا دو مثالوں کا بغور جائزہ لیں --- ایک موقع پر خوابوں کا خواب ایک
دنیاوی جھوٹ کی طرح ہے۔ دوسرے مرحلے پر سونے کا خواب مقداد - خدا کا وژن جیسا ہے۔
یہ سب آنکھوں کا کھیل ہے۔ پہلی مثال مہربان دل کے لئے ہے۔ جبکہ دوسری مثال روحانی
لوگوں کے لئے ہے۔
گوربانی
میں گرو ارجن دیو جی کا کلام ہے - جو کوئی ٹھاکر سے اپنے ساتھ سو جائے۔ نانک داس
نے جو بھی منہ سے کہا ، اسے سچ ہونا چاہئے۔ خدا ظاہر ہے اس زندگی میں عقیدت مند کی
ہر خواہش کو پورا نہیں کرسکتا۔ کیونکہ تقدیر مستقل ہے۔ یہی وجہ ہے کہ یا تو اسے
خوابوں میں پورا کیا جاسکتا ہے یا بصورت دیگر مختلف لطفوں اور کرم جونس کے 84
چکروں میں۔ تم خود کھاؤ ، نانک حکمی کو آنا چاہئے۔ انسان جو کچھ چاہے گا ، وہ رب
کے حکم کے مطابق حاصل کرتا رہے گا۔ اور زندگی کی خوشی اور غم کا سفر چلتا رہے گا
--- لیکن کوئی نجات نہیں پائے گی اور نہ ہی حق کا ادراک ہوگا۔
ہندی فلم
“سلسلا” کا ایک گانا ہے - "دیکھا ایک خواب تو یہ سیسلہ ہیو" یہاں تک کہ
اگر پھول ہوں ، تو ان کے مابین ایک خلا ہے۔
اگر یہ
کہانی محبت کے نقطہ نظر سے سمجھی جائے تو عاشق اور عاشق کے اتحاد کا نظارہ صرف
خواب جیسی صورتحال میں ہوسکتا ہے۔ اگر تھوڑا سا فاصلہ بھی ہو تو ، محبت اپنی
پاکیزگی کھو دیتی ہے۔ یہاں خواب کو نہ صرف انسانی خواب کی عظمت یا موجودگی دی جانی
چاہئے --- بلکہ روح کا فخر ، جب دماغ دنیا ، مذہب یا خواہش سے واقف نہیں ہوتا ہے ،
تو برہان اور ہجر لا طلق بن جاتے ہیں۔ ….….….….… انش اور انشی ایک دوسرے سے منسلک
ہو جاتے ہیں۔ دقلیت سے ہی کوئی ادویت یا توحید میں داخل ہوتا ہے۔
نیند کی
برکت سے اللہ پاک نے انسانی برادری کو چار خصوصی راز سے نوازا۔ مثال کے طور پر) 1)
دنیا باطل ہے ، 2) وقت اور جگہ کا احساس بیکار ہے۔ 3) کائنات کی خواہش خدا کی شان
کے لئے استدلال کرنا پڑتی ہے اور 4) موت کا دروازہ صرف محبت میں کھلتا ہے۔
No comments:
Post a Comment