Manchale ka Sauda –extract from episode five of PTV
OF ASHFAQ AHMED
https://drive.google.com/file/d/1V0iDb8rqDsbrXctiLLvqQ8qYu6pPQHwb/view?usp=sharing
OR
मनचले का सौदा
Listen the video and then
the transcription.
The mystic is shown as the cobbler --- who mends and fixes
torn shoes. By wearing well-made shoes, it is easy to traverse the journey of
human life. The path of this journey is strewn with thorns and stony obstacles.
When wearing the shoes of detachment from the world, the human body (made of
skinny leather) can comfortably live the physical and metaphysical life. The shoes
of detachment imply teachings blessed by the mystic of current time and space for
the sincere seeker or the Abid.
The clip shows that while the mystic(shoemaker) is jailed.
Upset by this development, his seeker reaches the prison for his bail. The narrative
between the mystic and the seeker is full of transcendental wisdom. The mystic
asks why the seeker is come to meet him in prison. The following is an
inspirational dialogue, though the seeker intently listens to the mystic's
wisdom with very few words.
DIALOGUE
MYSTIC -- भाईजान ये तो कैफियतें है यह तो आती जाती रहेंगी-- खुशी खुशाली, सख्ती नरमी, गर्मी-सर्दी इस पर तवज्जो मत दो॥ काम करना है, ध्यान देना है, लगन से काम करना है टांके पे टांका लगाना है गांठ पर गांठ, नोट (knot) पे नोट(knot) लगाना है कालीन नहीं बनाना, फूल फूटे नहीं बनाने बस नोट (Knot) पर नोट (knot) लगाए जाना हे॥
SEEKER-- मैं आपकी ज़मानत के लिए हाजिर हुया हूँ ॥
MYSTIC-- उसकी जरूरत नहीं है भाई जान ये खुद ही ठीक हो जाएगी॥ जरूरत इस अमल की है सर्च लाइट (Search Light) ले कर के मखलूक-ए खुदा-की रहनुमाई की जाए॥
SEEKER --Search Light?
और यह सर्च लाइट (Search Light) साइंस ( science)
को समझे बेगार हाथ नहीं आएगी। physics के जाने बेगार metaphysics नहीं पकड़ी जेएगी ॥ इस दौर में physics ही metaphysics में ढलती जा रही है और इस quantum theory में ही सारा राज़ पोशीदा है ॥
Seeker –quantum physics?
Mystic –अरे भई जान metaphysics के जाने बेगार और photon को समझे बिना रहमुतालह दस्तगीर का यह असरार (secrets) कैसे समझ में आ जाएगा ॥ कि जब मुजाहिद (devotee committed
to Islam), मुकाम-ए-तौहीद -- मुकाम-ए हक ( the ultimate destination of the Truth) पर पहुंचता है न वोह मुजाहिद ( (devotee
committed to islam )रहता है न तौहीद( Non-duality), न वाहीद ( single), न बीसीआर (abundant), न अबिद न महबूब, न हस्ती (existence) न नेस्ती (nonexistence), न सिफ़त (attributes) न मासूफ़ (attachment), न-जाहिर (manifest) न-बातिन (unmanifest), न मंजिल न मकान, न कुफ़र न इस्लाम, न काफिर न मुसलमान॥
ओह भाई जान – AT SUB-ATOMIC
LEVEL THE MATTER DOES NOT EXIST WITH CERTAINTY, BUT SHOWS TENDENCY TO EXIST. THAT IS WHY PARTICLES CAN BE WAVES AT THE SAME TIME. अब यह वाज़े हो गया है न हस्ती (EXISTENCE) न नेस्ती (NONEXISTENCE), न सिफ़त (ATTRIBUTES) न मासूफ़ (ATTACHMENT), न-जाहिर (MANIFEST) न-बातिन (UNMANIFEST), न मंजिल न मकान, न कुफ़र न इस्लाम, न काफिर न मुसलमान॥
हम किसी भी अटमी ईवेंट (ATOMIC EVENT) को यकीन के साथ नहीं कह सकते, सिर्फ यह कह सकते है कि ऐसा हो सकता है॥ अब आगे उसकी मर्जी ॥
SEEKER—
मैं तो सिर्फ बातिन ( inner realization) के सफर में interested हूँ ॥
MYSTIC— laughs ---
बातिन का सफर!!! साइं बनना है?? तो फिर तजरबे से गुजरना पड़ेगा ॥ science daan
की तरह यकतरफा (fully focussed) होना पड़ेगा॥ उसकी रवीए की पेरवी करनी पड़ेगी॥ मठ में उतरना पड़ेगा और मठ में उतरे तो मुराकबा (meditation) करना पड़ेगा और मुराकबा laboratory में होता है जबानी- कलामी इल्म में नहीं, छपी छपायी मालूमात से नहीं॥
साइं बनना है ? सूफी बनाने का इरादा है?? रास्ता बदल गया है ?? अब उधर से आना पड़ेगा –science के समुंदर से!!
Science के टीचर न बन जाना, science के साधु बनना ॥ साइं Max Planck की तरह, साइं neel bohr की तरह , बाबा Rutherford और साईं Einstein की तरह—तुम पर जमाने का बातिन रोशन होने लगेगा ॥ time और space दोनों गरिफ़्त में आ जाएंगे ॥
INTROSPECTIVE
UNDERSTANDING
The message is meant for the person who is keen on self-realization that is अपनी हस्ती या खुद-शिनासत
का शौक-ए-जनून रखता हो॥
A man in this world must live through the ups and downs
of life (mentioned here as कैफीयत) that are timebound and must come and go.
Mental worries or brooding over them is not the solution. But submission of
mind and happily abiding by his will (रज़ा में राज़ी
रहना) is the path or
the way out to get relief of the worldly prison, not temporarily but
perpetually.
The objective of human life is the necessity of experiencing
the ultimate Reality through physics and metaphysics. Mystics do not
deny the observations and progress of science to benefit the material world.
But at the same time, they preach that the metaphysical aspect of aspiration
and yearning for the soul should not be ignored. When constraints of human
understanding via mind and senses have been grasped, the motivation for the
inner path is dawned. A commoner does not seek the ultimate Reality "within"
unless he is mentally convinced that the physical is limited and constrained by
time and space.
That spiritual realm is known as मुकाम-ए-तौहीद -- मुकाम-ए हक. It is unique in its attributes –neither one nor copious, devoid of the
concepts of existence, non-existence, beyond time and space, faith, belief, and
logic.
Scientists may undertake multiple experimentations and
attain the sub-stratum of knowledge---however, they reach a point where they
feel exhausted. They question themselves Who is behind this inexplicable
phenomenal fabric.
Even the theories of quantum physics mention that an
atomic particle is a wave—that its speed and position cannot be captured
simultaneously. A particle tends to
appear, disappear and then reappear. What form of energy and intelligence is
guiding the motion of such particles? What appears at rest as particles or
waves in motion are perpetual vibrations—but the human mind cannot precisely
infer the constant change in the universe.
Thus, scientists have concluded that appearances may or
may not be valid. The precise words in the above dialogue are-- at the sub-atomic level,
the matter does not exist with certainty but shows a tendency to exist. That is why particles can be waves at the same time. हम किसी भी अटमी ईवेंट (ATOMIC EVENT) को यकीन के साथ नहीं कह सकते, सिर्फ यह कह सकते है कि ऐसा हो सकता है॥ अब आगे उसकी मर्जी ॥ --it all depends on Divine Will.
This treasure
trove of spiritual understanding of the "Reality" can be felt with a centripetal
focus within the inner self, by meditative concentration and not centrifugally
in the cosmic domain. After intense research in physical and mental
laboratories, most well-known scientists like Planck, Neel Bohr, Rutherford,
and Einstein have concluded that a transcendental domain beyond physical and
mental needs to be explored. It is at that point of time scientists lovingly submits---कि हकीकत आशना नहीँ होती and prays for God's loving grace ( इश्क और रहमत),
faith(यकीन), patience(सब्र) the inner, unsaid
Reality starts unfolding.
रहमत द दरया इलाही हरदम वगदा तेरा,
जे तू मेनू कतरा बख्शे कम बन जाए मेरा ॥
And then the yearning cries out –in
the words of Allama Iqbal—
कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में
कि हज़ारों सज्दे तड़प रहे हैं मिरी जबीन-ए-नियाज़ में
हे खुदा, मेरे रब, -- मैं दीवानगी की रंजिश में हूँ, तेरे दीदार की बेताबी को बरदाश्त नहीं कर सकता, ,और दुआ करता हूँ कि अपने वजूद को ज़ाहरी रूप में मेरी आँखों में आशकार कर दे ॥ तुम्हारी मुकदस शान को हजारों सजदों से इस्तकबाल करूँ॥असल में इस मिसरे का तालुक इश्क इरफानी से है॥ जिस इबादतऔर इश्क या मिज़ाज में यह ख्याल लिखा गया उससे यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि सूफिआन की रूह रब से विसाल के लिए तड़प रही थी॥ इस को विरह या बिरह का हाल भी कहा जा सकता है ॥ ऐसे इश्क की पीड़ बड़ी अनोखी है—जैसे सौ सौ सूल जिगर में जख्म कर रहे हों और नैनों से नीर की बारिश हो रही हो॥रब के तसुवर के एहसास की फर्याद तो की जा सकती है पर वोह दीदार भी उसकी रहमत से मिलता है, न कि सिर्फ अपनी दुआ की चाहत से, और न ही ऐसा मंज़र बाहरली आँखों से हो सकता है,जो कि फ़ना की दुनिया को देखने के काबिल हैं ॥ इस राज़ से इकबाल अच्छी तरह से वाकिफ थे ॥रबी दीदार अगर कलब-ए-पाक (pure heart) में हो जाए तो उसका नूर सारी कुदरत और कायनात में देखा जा सकता है --- यही बजुर्गों -ओ- दीन या पीरों-ओ-औलियोन का मानना है ॥ अपने दिल को हल्का करने के लिए और अपनी आँदूरणी परेशानी को शिफ़ा के लिए इकबाल ने अपने जज़्बातों को अल्फ़ाज़ों का जामा पहनाया॥ ऐसे ख्याल तभी आ सकता हैं जब कि रूह और मन की सारी तवजू का मरकज़ --रब की जात पर ही हो॥ ऐसे दीदारको अपने मुकद्दर की शुक्रगुज़ारी समझेंगे और इकबाल अपनी ला-इंतह खुशी का इजहार हजारों- लाखों सजदों में करेंगे ॥
The ultimate Reality is within the human body of the seeker ---a true Sufi.
Wonderful explanation. The best is... science ka teacher nahi per sience ke sadhu banena
ReplyDeleteTrue...the uncertainty principle at the quantum level applies at the transcendental level... what a beautiful comparison. सब उसका हुक्म है।
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