DIALOGUE BETWEEN A SEEKER
AND THE FIFTH GURU
(PAGE 763 SGGS)
Please also listen to the audio clip in silence and solitude.
https://drive.google.com/file/d/1hnydn4TjFNfjgN9n0uJZxVeI4kCDC2Dr/view?usp=sharing
मै आसा रखी चिति महि मेरा सभो दुखु गवाइ जीउ ॥
इतु मारगि चले भाईअड़े गुरु कहै सु कार कमाइ जीउ ॥
तिआगें मन की मतड़ी विसारें दूजा भाउ जीउ ॥
इउ पावहि हरि दरसावड़ा नह लगै तती वाउ जीउ ॥
हउ आपहु बोलि न जाणदा मै कहिआ सभु हुकमाउ जीउ ॥
हरि भगति खजाना बखसिआ गुरि नानकि कीआ पसाउ जीउ ॥
INTROSPECTIVE
MEANING—
“नानक दुखिया सब संसार” –यह एक बहुत ही इरफ़ानी फिकरा है॥ हर इंसान की ज़िंदगी, दिल के दरिया में दबी हुई दर्द या अरमानों की दासतान है॥ कभी कभी यह दर्द अपने रब के लिए रूह की हिजरी तड़प भी हो सकती है ॥ शब्द की पहली लाइन में मुरीद की अपने मुरशिद से अर्ज है, --- कि गुरु साहिब मेरे “सब” रंज-ओ-गम का अज़ाब को दूर कर दो ॥
“सभो दुखु गवाइ जीउ” means that the devotee prays for relief from the cycle of transmigration॥ मुरीद की अरज़ी सिर्फ इस 80-90 साल की जिंदगी की दुशवारियों तक महदूद नहीं है ॥ काएनत में रूह का सफर 84 लाख जूनियों में हो सकता है ॥ इस नुक्त-ए नजर से कैद-ए- हयात में जितनी भी इंसानी या गैर-इंसानी जामे की परेशानीयाँ 84 लाख जूनियों में आ सकती हैं, मुरीद उनसे निजात या मुक्ति की गुज़ारिश कर रहा है॥
गुरु साहिब सलाह देते हैं --- अगर तेरे दिल की यही सची तमन्ना है तो पहले “गुरु कहै सु कार कमाइ जीउ” —“जो कामिल-मुरशिद कहता है उस पर अमल कर॥ अपने ‘मन की मतड़ी’ की सोच, यानि दिमाग की दौड़ ( concepts of logic and rationality or cause and effect) वहम-ओ-भरम,ठीक-गलत, सच-झूठ या गरूर-ओ-ख्याल का तर्क कर दे और अपने आप को उसकी रज़ा में राज़ी कर ले ॥ होमे, तुकबर और दूजे भाव से ला-तालुक हो जा॥ पर यह भी सच है “-बिन शबदे होमे किन मारी” ॥ मतलब नाम, शबद या इस्म-ए -आजम का जिक्र और फिक्र-ओ-गौर, मुरशिद की बतायी हुई तरकीत से शुरू कर॥
मन दुनिया के काबू है और रूह मन के कब्जे में है ॥ दुनिया में अचानक् हालात बदलते हैं॥ अच्छे -बुरे अमलों का हिसाब-किताब होता है और ज़िंदगी सुख-दुख के वकफ़े से गुज़रती है ॥ मन में हमेशा डर और शक रहता है कि उसका comfort zone कहीं उथल पथल न हो जाए॥ इसी वजह मन बे-सकून रहता है॥
अगर दानिशमंदी होते हुए भी बंदे की रूहानी और नफ़सानी हालत बेहतर होने की बजाए बत्तर होती जाती है –तब कैद-ए- हयात से निजात पाना जरूरी है ॥ अच्छे अम्लों का फ़ना होना भी जरूरी है क्योंकि इनका निबेड़ा करने के लिए भी कैद-ए-हयात का सफर लाज़िम हो जाता है ॥ (Good deeds are also golden chains in Karmic conundrum)
गुरु साहिब फिर बड़ी हलीमी से मुरीद को फरमाते हैं --- यह सलाह और तरीकत मेरी नहीं है,बल्कि मेरे को खुदावंद परवरदिगार के हुक्म से आशकार हुई है ॥ यह रूहानी खजाना है –जो गुरु नानक साहिब की रहमत और फजल-ओ-करम से अपने भक्तों के लिए नाज़ल किया है ॥ जितने भी
गुरु सहबान हुए हैं –उन्हों ने “अपने गुरु” को गुरु नानक साहिब की अज़ीम अज़मत का
सत्कार दिया है ॥
A meditative voice reciting the shabad...it's without musical instruments but carries the tone of tanti saaj. Then follows the great indepth meaning of the shabad. It clears all your doubts and motivates you on the seeker's path.
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