PREFACE
जितने भी धर्म ग्रंथ हैं और मुकदस किताबों की बानी या कलाम है उनका अर्थ करना और समझना आसान नहीं है॥ हर बार इन्हे पड़ते पड़ते कोई नई बात समझ आती है॥ यह नहीं है कि हम इनको धयान से पड़ते नहीं है पर हमारी concentration and understanding ज़िंदगी के हालत और वजुहात से बदलती रहती है ॥ पहली बार जो समझ आता है, दूसरी बार उसका कुछ और मतलब निकलता है॥ तीसरी बार फिर नए ज्ञान से परभावित होते हैँ ॥ क्योंकि, संतों, सूफियॉन और गुरु साहिबान का मुकदस, पवित्र पाक कलाम उनके ऊंचे रूहानी मरतबे और इश्क से पुरनूर हालात को बयान करते हैं ॥ ॥ रुहनीयत या रूहानी राज़ किसी के अक्ल या नकल, तर्क या फिलासफी के मुहताज नहीं होते। और इस लिए हम सबको ऐसे लगता है शायद हमने पहली, दूसरे, तीसरे बार ठीक तरह से पड़ा या समझा नहीं है॥ (Revealed truth is beyond any mental reasoning and comprehension of any ordinary individual. Revelation is blessed and cannot be acquired. Reason is generally applied to explain the revelation to some extent.)
इनको तो कोई दूसरा उचकोटी का संत, सूफी या महात्मा ही समजा सकता है अगर हम इनको समझने की कोशिश करें तो ॥[1] हम को इन महतमाओं के रूहानी तजरबे के नेक, पाक इबादत का फायदा उठाते रहना चाहीये ॥ [2]
गुर नारायण देऊ गुर गुर साचा सिर्जनहार
गुर तूठे सब किछ पाया जन नानक सद बलिहार॥
इस कड़ी का भी मतलब रुहनीयत की ढूँगायी से है॥ वोह कौन सा गुरु है—जिसका इशारा इस कड़ी में किया गया है॥ कोई पुराने महात्मा का संकेत है या फिर आज के गुरु के बारे कहा जा रहा है? या जिस को भी हम अपना गुरु सत्कार से समझते हैं ॥ साथ ही में गुरु को नरयान भी कहा गया है॥ सिरजनहार का अर्थ है पैदा, पोषण, पालने, चलाने और परभावित करने वाला॥ गुरु साहिब पहली कड़ी में कह रहे हैं –“दुख भंजन तेरा नाम” कि ओह मालिक मेरे सब दुखों का इलाज यानि तेरी जुदाई के दुख का दर्द की दवा तेरा नाम ही है। मेरे हिजर- ए- गम or pain of separation का इलाज तेरा नाम है शब्द है धुन है॥
परमात्मा, गुरु और उसके नाम में कोई भेद नहीं है वोह अभेद हैं ---लासानी और लफ़ानी है – जिस का कोई मुकाबला या comparison नहीं किया जा सकता और वोह eternal है beyond any concept of life, death, time and space. ॥ वोह जो “शब्द”, हुकम Word, बानी है सृष्टि का करता है,वह ही गुरु सतगुरु है और सारी कायनात उसकी दया और हुकम की पाबंद है ॥
गुरबानी में आया है "शब्द गुरु सूरत धुन चेला" । that Shabad has incarnated in flesh as the Satguru. शब्द, नाम , हुकम --- सिर्फ एक ताकत या एनर्जी हि नहीं है बल्कि समझदार, अदली यानि इनसाफ़ी ,सर्व- व्ययपी और सब को एक जैसे कानून में रखने की प्रक्रिया है --- Hukam is Divine doctrine of Omniscient ( all knowing), Just, Omnipresent and Equitable system.
गुरु साहिब इस कड़ी में उस अवस्था की बात कर रहे हैं जब उनको अपने गुरु के शब्द स्वरूप में अंदरूनी एहसास हो गया है॥ यानि अपने मुरशिद को कलामे-ए-इलाही (के हुकम) या नाम को अज़ीम रूप में अपने वजूद में महसूस कर रहे हैं। शब्द गुरु और परमात्मा को एक रूप में experience कर लिया ॥
इंसान की ज़िंदगी में यह हालात कैसे पेदा होते हैं – एक लफ़्ज़ में --- सब उस रहमान की रहमत का खेल है जिसे गुरबानी में “धुर मस्तक” या destined grace of the Divine through living guru of the current time and space.[3]
जब एक मुरीद, मुरशिद से नाम दान ले कर शरीयत या कर्मकांड से ऊपर उठ जाता है और रूहानी रस्ते पर चलने की कोशिश करता है तब शिश या मुरीद या मोमिन को अपने गुरु के जिसमानी वजूद से मोहब्बत हो जाती है। यह इबादत-ए-इश्क मुबारक है और जरूरी भी ॥ पर यह मंजिले मकसूद नहीं है॥ भजन सिमरन करना, बाहरी वजूद से मुब्तला (या लीन) होना पहली मंजिल है, दीन के रास्ते पर चलने का पहला स्टेप है॥ सूफी ऐसे मरकाबा( meditative concentration) और रहनी को “तरीकत” कह कर समझाते हैं ॥
पर असली मकसद अंदरूनी या बातिनी इबादत या इश्क हक़ीक़ी से है जो खुदा की रहमत से होती है॥ अंदरूनी तरक्की मंजिल दर मंजिल होती है। सूफी इस को मार्फत का सफर कहते हैं॥ अपनी हस्ती को मुरशिद के नुरी स्वरूप में फना या नसतो- न- बूत करना ही हकीकत है ॥ यह रास्ता यकीन, ईमान, इश्क और सबसे बड़ कर खुदा की रहमत और कबूलियत का है।
स्वामी जी भी कहते हैं –एक जन्म गुर भक्ति कर, जन्म दूसरे नाम, जन्म तीसरे मुक्ति पद , चौथे में निज धाम ॥ यहाँ पर “जन्म” का मतलब ज़िंदगी की म्याद से नहीं है परंतु different states of spiritual development, ascension and realization like tareeqat, marfat and haqeeqat and fana[4].
इश्क मजाज़ी तो ज़रिया है इश्क हक़ीक़ी के लिए॥ बाबा जी कहते हैं अगर इश्क मजाज़ी अपनी मंजिल यानि इश्क हक़ीक़ी के लिए रुकावट बन जाए तो उसको भी खतम कर देना चाहीये ---as the Buddhist say—Kill the Buddha, if the love is constrained by the physical form of Buddha.
वारिस शाह ने कहा है
अवल हमद खुदा का विरध कीजे , इश्क कीता सु जग द मूल मियां
पहले खुद ही रब ने इश्क कीता, ते माशूक सी नभी रसूल मियां ॥
(पहले हम को उस महान खुदा की तारीफ करें, जिसने इश्क को सृष्टि का मूल बनाया ॥ उस खुदा ने सबसे पहले इश्क मोहम्मद साहिब से किया--- (that he loved His mystic lovers)
ईसाई मत में देह धारी गुरु को word made flesh या son of God कहा गया है॥[5]
ALLMA IQBALअपनी मस्ती में कह गए –“यार को हमने जा -ब-जा देखा ॥ कहीं जाहीर कहीं छुपा देखा॥“ मतलब कि “मुरशिद-ए-कामिल में ही मेने अल्लाह पाक का दीदार कर लिया॥ यह दीदार बाहरी नहीं पर बातिनी एहसास है—a state of inner realization.
गुर नारायण देऊ गुर गुर साचा सिर्जनहार का आसान अभिप्राय है --
हकीकत,हक, हुकम नाम, शबद, सच या कामिल मुरशिद में ही वोह अल्लाह, रब, ईश्वर, भगवान मजूद है॥ इसलिए गुरु या शबद या मुरशिद-ए कामिल ही सृष्टि का सिर्जन हार है, आलमे -ए -खलक और आलम-ए -फ़ानी का करता है। गुरु या मुरशिद - ए -कामिल या शब्द में कोई फरक नहीं है न ही समझना चाहीये॥
गुर तूठे सब किछ पाया जन नानक सद बलिहार॥
गुरु नानक साहिब ने पर्मातामा को “एको सत्नाम “ कह कर “गुर प्रसाद” से जोड़ दिया ॥ यह एक अजीब रूहानी भेद है जो की खुदा की रहमत से ही एक गुरमुख समझ सकता है ॥ उसकी दया मेहर देने का ज़रिया --- गुरु नानक साहिब कह रहे हैं – गुरु ही है ---जिस पर में अपना सब कुछ कुर्बान कर दूँ ॥
यह सब उस मालिक का खेल है जो कि वोह आप खेल रहा है और जिसको एक गुरमुख ही समझ सकता है ॥ गुरु साहिब सिद्ध गोष्ट में कहते हैं ---
अबिनासी प्रभि खेलु रचाइआ गुरमुखि सोझी होई ॥ नानक सभि जुग आपे वरतै दूजा अवरु न कोई॥[6]
[1] Mystical experiences of inner dimension cannot be subjected to personal intellectual determination unless it is explained by another mystic or saint of the highest order. our mind is limited in understanding the mystical and spiritual phenomenon।
1. गुरु नानक साहिब कहते हैं –“ जैसे में आवे खसम की बानी तेसड़ा करों ज्ञान वे लालों ॥ as the word of the Lord comes to me, so do I express it oh, Lalo.
2. कबीर साहिब—"कह कबीर हम धुर के भेदी हुकम हज़ूरी आए” ॥ says Kabir I speak the secret of the Truth as mandated by the Lord.
3. Said Jesus in John 14--The words I say to you are not just my own. Rather, it is the Father, living in me, who is doing his work.
4. बाबा बुल्ले शाह का कलाम है “मैं गल ओथे दी करदा हाँ पर गल करदा वी डरदा हाँ ॥ I speak of the highest mystical domain with precautionary oversight.[2]
[3] A) हरि हरि नामु निधानु है गुरमुखि पाइआ जाइ ॥जिन धुरि मसतकि लिखिआ तिन सतिगुरु मिलिआ आइ ॥
The Name of the Lord, Har, Har, is the greatest treasure. The Gurmukhs obtain it. The True Guru comes to meet those who have such pre-ordained destiny written upon their foreheads.
B) सतिगुरु दाता हरि नाम का प्रभु आपि मिलावै सोइ ॥ सतिगुरि हरि प्रभु बुझिआ गुर जेवडु अवरु न कोइ ॥
The True Guru is the Giver of the Name of the Lord. God Himself causes us to meet Him.
The True Guru understands the Lord God. There is no other as Great as the Guru
[4] सरा सरीअति ले कमावहु ॥तरीकति तरक खोजि टोलावहु॥मारफति मनु मारहु अबदाला मिलहु हकीकति जितु फिरि न मरा ॥
Let your practice be to live the spiritual life.Let your spiritual cleansing be to renounce the world and seek God.
Let control of the mind be your spiritual wisdom, O holy man; meeting with God, you shall never die again.
[5] Anyone who has seen me has seen the Father. The Holy Spirit, whom the Father will send in my name, will teach you all things and will remind you of everything I have said to you.
[6] The eternal imperishable Lord God, the Guru has staged this play of creation, karmic dispensation, mind and maya, birth and deaths and His realization; the Gurmukh understands it. O Nanak, He extends Himself throughout the ages; there is no other than Him
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1. गुरु नारायण (गुरु रब
का रूप है)
2. दायु गुर (गुरु दया
मैहर रहमत करता है )
“गुरु
नारायण” का मतलब है कि गुरु का इन्सानी जामा ही नारायण या
परमात्मा, उस खुदा, उस रब का शब्द स्वरूप है, गुरु ही नर-नारायण है जो
एक आदमी के वजूद में दुनिया में आया हुआ है।। यह एक बहुत बड़ा राज़ गुरु साहब हमको
समझा रहे हैं।। वैसे तो हम कई प्रकार के गुरु दुनयावी इल्म के लिए जिंदगी में
कबूल करते हैं-- जैसे पहले माता पिता, फिर स्कूल
कोल्जेस के उस्ताद-- पर यहां पर जिस
गुरु का मतलब है वह परमात्मा का मुजस्सम स्वरूप है personification of
the Divinity or the God है या नूरी स्वरुप है ।। The concept is of living Guru of present day and age
and not of earlier times, however great they may have been.
एक दूसरी जगह गुरु साहिब फरमाते
हैं “समुंद्र बिरोल शरीर हम देखेओ, एक वस्तु अजूब दिखाई ,गुरु गोबिंद गोबिंद गुरु नानक भेद ना भाई”// कह रहे हैं, हमें
अपने शरीर के अंतर में, जो की रूहानी कायनात के समुन्दर के मानिंद है इबादत की डुबकी
लगा कर, एक अजब हकीकत समझी है –कि खुदा और कामिल मुर्शिद में कोई फर्क
नहीं है// गुरु की अजमत, इज्ज़त, महिमा---
लासानी और ला-ब्यान है// उस खुदा और उस के खूबियों को लफ्ज़ी जामा नहीं पहनाया जा
सकता // जब इस तरह का बातीनी experience या inner experience of consciousness हो जाता है तब किसी तरह की मश्कूकी या शक नहीं रह जाता //
हजूर महाराज जी, बाबा बुल्लेह शाह के हवाले से-- इसी सीक्रेट को समझाया
करते थे – मौला आदमी बन आया // Hazoor ने तो अपने सत्संगों में ठोक
बजा कर गुरबानी का होका दे कर कहा—“गुर परमेश्वर है भी होग” सचा गुरु
परम्तामा था, है, और होगा भी — ईसा भी कहता थे--
Anyone who has seen me has seen the Father.
कबीर साहिब का
दोहा –गुर गोबिंद दोनों खड़े किस के लागों
पायों , बलहारी गुर आपने जिस गोबिंद दिया लखाए// से सब वाकिफ हैं //
इसके इलावा
गुरबानी में आद गुर नमः जुगाद गुरु नमः श्री गुरु देवो नमः सतगुर
नमह I का भी ज़िक्र है // bow to the
first primordial Guru, then I bow to all gurus of all times that have
blessed this planet so far. I bow to the Guru of My guru, I bow to my Guru who to me is the Sat Guru---the
personification of the Truth.
A perfect master or Guru includes all forms of
divinity that is to say he is the Lord God and God of all gods. that is
गुरु ब्रम्हा ,गुरु विष्णु ,गुरु
देवो महेस्वरम ,गुरु साक्षात्
पारब्रह्म ,तस्मै श्री
गुरुदेवाय नमः ....
The Vedic
school of thought endorses that Gurus have come and gone in all ages while the
living Guru deserves the highest recognition.
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गुरु साहब अपना experience बयान कर रहे हैं कि मैंने भी अपने गुरु की दया
मेहर (“दायु गुर”) से खुदा की तज्जली
या नूरी या शब्द स्वरूप को साकार किया और पता चला कि मेरे सतगुरु का देह रूप और उस परमात्मा में कोई
फर्क है ही नहीं// और येही तज्जली की रौशनी, शब्द और नाम है//
वैसे तो रब की रहमत तो असीम है—उसने हमें इन्सानी जामा बख्शा है, हमारे साँस ग्रास उस पर मुनसर है , दुनिया का साजो
सामान , धन, मान, समाज में ओहदा , घर बार-- तो उसकी मैहर से ही है// पर यहाँ पर
गुरु साहिब रब की उस रहमत का ज़िक्र कर रहे हैं जो की कामिल मुर्शिद के ज़रिये से
होती है ---और वह अपनी असली पहचान//
हमारा वजूद सिर्फ एक पञ्च तत्वों या अनासर का पिंजर नहीं है बलकि रब ने अपने आप को इसमें छुपा के
रखा हुआ है// रूह रब की अंश है// रब इसका अंशी है// सतगुरु भी उस अंशी का देह रूप
बन कर दुनिया में आते हैं ताकि अंशी को
अंश से मिलाया जा सके // in English it is stated
that the purpose of the true Guru is to enable realization of the microcosmic
entity with Macrocosm// Rumi says that it is not that the ocean contains the
drops—but a drop contains the Ocean. मतलब कि अगर रूह के
उपर से पञ्च तत्व या अनासर, मन माया के परदे उत्तार दिया जाएँ, अनाह, अहंकार और
खुद परस्ती के खोल उत्तार दिया जाएँ तो यही रबी ज़ात है // हजूर भी इस भाव को
बड़े आसन तरीके से समझाया करते थे-- कि
बीज में ही बड़ का दरखत है// और बड़ के
दरखत में ही बीज है//
# ਆਤਮ ਮਹਿ ਰਾਮੁ ਰਾਮ ਮਹਿ ਆਤਮੁ॥
The Lord is in the soul, and the
soul is in the Lord. This is realized through the Guru's Teachings. (PG 1153 AG)
*** ਸਰਵਰ ਮਹਿ ਹੰਸੁ ਹੰਸ ਮਹਿ ਸਾਗਰੁ The
swans are in the pool, and the pool is in the swans. (PG 685 AG)
The seeker-Hans who places the Self
(mah-i) in (Sarvar/Sarovar) the guru-pool, i.e., follows the Guru, (saagar-u =
ocean) the Almighty abides in the mind of that seeker-Hans.
## ਠਾਕੁਰ ਮਹਿ ਦਾਸੁ ਦਾਸ ਮਹਿ ਸੋਇ॥The
Lord's slave is in the Lord, and the Lord is in His slave. (PG. 686 AG)
$$ ਸਾਗਰ ਮਹਿ ਬੂੰਦ ਬੂੰਦ ਮਹਿ ਸਾਗਰੁ
The
drop is in the ocean, and the ocean is in the drop. Who understands and knows
this? (PG 878 AG)
गुरु की अजमत और रहमत को बयान नहीं किया जा सकता// A very memorable incident is worth narrating of Bade Maharaj Ji (Hazur
Maharaj Sawan Singh Ji) which based is upon the following Shabad —
पिंगल
परबत पार परे खल चतर बकीता
अन्ध्ले
त्रिभुवन सूझ्या गुर भेट पुनीता
महिमा
साधु संत की सुन मेरे मीता
मैल खोई
कोट अघ हरे निर्मल भये चीता –(fifth guru page 809)
“Gurbani says – that a crippled or disabled person can cross over the
mountain; a foolish person (like a donkey) can carry the wisdom of four Vedas.
A blind can experience three inner spiritual realms by surrendering to the
Satguru. This is the glory of Guru. All filth of millions of sins is washed
away and one acquires immaculate consciousness”.
A seeker humbly asked Bade Maharaj Ji —how the above is within the
domain of possibility? Hazur replied “न तुसी पहाड़ नू देखो;
न मूर्ख (खोते) नू देखो// न तुसी अन्ने नू देखो; न ही कर्मा दी मैल नू देखो; तुसी बस सतगुरु दी महिमा,
रहमत ते वडयाई नू देखो//
यह गुरु ही है जो हमारे को अज्ञानता के अंधकार से दूर करके रूहानी रौशनी करता
है और हम अपनी अस्लीताय्त के समझने के काबिल बन जाते हैं , यानी हम ऊसके वजूद में फना हो जाते हैं।। असल
में रूहिन्यत का “आगाज़ और अंत या आखीर ” गुरु की अपार कृपा और रहमत से होता
है// पहले इस नुक्ते को समझना है और फिर इस राज़ को गुरु की दया मेहर से साकार करना
है।।
कौन सी अज्ञानता है जो गुरु की दया मेहर से दूर होती है// वह है मन और माया
की ला- इल्मी या अज्ञानता, इन्सानी तुकबर या गरूर का होना // इस झूठी दुनिया से
झूठे प्यार को और हकीकत समझना, जो कुछ हम
देख रहे हैं उसको परमानेंट या मुस्तहकम या काइम
समझना//
यह ७०-८० साल की जिंदगी एक खवाब की मानिंद है //हम इस सुपने में अपने आप को जागा समझ रहे है –पर इस
ज़िदगी का सुपना तो चल ही रहा है // सुपने
या ख्वाब में अपने आप को जो जागता समझता है –यही सबसे बड़ा धोखा है self –deception है //
दूसरी बात-- हमारा इन्सानी हस्ती हर वक्त बदल रही है और दुनिया हर वक्त गर्दिश
में है तो कोई भी चीज यहां पर कायम या सथाई नहीं है// इस वजह से हम जन्म मरण के
चक्कर में फंसे रहते हैं// cycle of transmigration में रहते हैं// अपने अम्लों या कर्मों का भोज लेकर
यह रूह, यह जीवात्मा, अनेक जोनीयों में फसी रहती है// क्योंकि हमारी हरकतें
अहमकाना या न समझी वाली होती हैं, रबी इब्दात को अहम् नहीं समझते और इखलाकी अमलों
या सदाचारी जिंदगी पर ध्यान नहीं देते // इस वजह से दुःख सुख के साइकिल में यह रूह गलतान हो कर परेशान हो जाती
है// हजूर समझाया करते थे कि मरने से पहले ही हमारा दूसरा शरीर तैयार होता है और
हम अपने कर्मों के मुजुबब दुसरे जामे में चले जाते हैं//
मुरीद को जो कुछ भी मिलना है अपने मुर्शिद के मौज और रहमत से मिलना है// पर गुरु नानक साहिब ने उसक एक
तरीका बताया है-- “गुरु प्रसाद जप”// गुरबानी का तो हर शब्द ही “इको
सतगुरु परसाद” से शुरू होता है –कि “वेह एक रब” तो सतगुरु की मौज और
मैहर का मुन्तजिर है //
जब देह रूपी शब्द सतगुरु यानी अंशी , देह रुपी शिश,
( जो की रूह या अंश का इस दुनिया में एक आरजी टिकाना है ) के ज़रिये समझाएगा, अपनी दया मेहर करेगा, और शिश अपनी मेहनत
मुशक्त से मालिक की इबादत,मोह्बात और इश्क में आशिय्ना होगा, खुदी, तकुब्बर, अनाह ,खुद परस्ती, अहंकार
को दूर कर लेगा, गफलत को छोड़ देगा या द्वेत भाव से बहार आ जायेगा तो उसे सच की
सोझी आ जायेगी // The story of a princess who
is awakened after many years of slumber by the loving kiss of a prince allegorically means that, ‘Master Prince —
Guru’ gives a ‘mystic kiss’ to the princess, the soul (seeker), asleep under
the spell of illusion of the mind (evil) to awaken it to the Reality .—
गुरु सचा सिर्जनहार ---- to continue if required
?
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