ALLAMA IQBAL GAISU -E TABDAR
गेसू-ए-ताबदार
को और भी ताबदार कर
अल्लामा
इक़बाल
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https://youtu.be/3Xmv2oC31Cg
बाल-ए-जिब्रील
1 गेसू-ए-ताबदार को और भी
ताबदार कर
होश ओ
ख़िरद शिकार कर क़ल्ब ओ नज़र शिकार कर
2 इश्क़
भी हो हिजाब में हुस्न भी हो हिजाब में
या तो
ख़ुद आश्कार हो या मुझे आश्कार कर
3 तू है मुहीत-ए-बे-कराँ मैं
हूँ ज़रा सी आबजू
या मुझे
हम-कनार कर या मुझे बे-कनार कर
4 मैं हूँ सदफ़ तो तेरे हाथ
मेरे गुहर की आबरू
मैं हूँ
ख़ज़फ़ तो तू मुझे गौहर-ए-शाहवार कर
5 नग़्मा-ए-नौ-बहार अगर मेरे
नसीब में न हो
उस
दम-ए-नीम-सोज़ को ताइरक-ए-बहार कर
6 बाग़-ए-बहिश्त से मुझे
हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्यूँ
कार-ए-जहाँ
दराज़ है अब मिरा इंतिज़ार कर
7 रोज़-ए-हिसाब जब मिरा पेश
हो दफ़्तर-ए-अमल
आप भी
शर्मसार हो मुझ को भी शर्मसार
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MEANINGS AS UNDERSTOOD
1 गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर
होश ओ ख़िरद शिकार कर क़ल्ब ओ नज़र शिकार कर
Iqbal
offers a vivid picture of the beauty of the human soul. He has imagined it to be
the "shining or captivating tresses" of a beautiful woman obscured by
karmic impurities. He urges all individuals to enhance the radiance and allure
of their souls through the pursuit of love and devotion to God. This
transformative process unfolds when one elevates the understanding and
awareness of the mind, curbing and nipping the wayward tendencies at their
inception (होश ओ ख़िरद शिकार कर क़ल्ब ओ नज़र शिकार कर) and steering clear of infatuations with the fleeting wealth and
attachment of this worldly existence.
2 इश्क़ भी हो हिजाब में हुस्न भी हो हिजाब में
या तो ख़ुद आश्कार हो या मुझे आश्कार कर
Ishq signifies the obliteration of the self, contrasting
with love and Mohabbat, which retain a sense of duality, seeking tangible
connections, passion, and a yearning for mental or physical togetherness. Since
the Divine remains unseen (हिजाब), and
His beauty remains invisible (हिजाब),
ignite the unperceived fervour or fire of Ishq within yourself. This silent
flame, invisible to the external eye, catalyzes self-realization. In doing so,
the Lord is kind to unveil Himself to human beings.
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