ज़िंदगी में कामयाबी
क्या है??
WHAT
IS SUCCESS IN LIFE?
कामयाबी वोह ही है जो हम को अल्लाह की राह पर चलने में मददगार हो, उसकी बारगाह में जाने का
शौक पैदा करे और अपने असल की पहचान में फायदेमंद हो ॥ असल मसला तो दुई को खत्म करना है॥ वोह शकस
मुबारक है जिसको यह बात समझ आ जाए। इंसानी हयात की कामयाबी का यही एक राज़ है॥
बाकी जितनी दुनियावी
जदोजहद है वोह इंसान की नाकामी है और पारेशानीओन और बखबख्तियों का आगाज
है ॥ मुल्क या दुनिया या माशरे में शुहरत और
सरमायादारी पाने की तमन्ना अगर पूरी भी हो
जाए तो यह खुदी कि अनह और तुकबर पैदा करती है- जो की ज़िंदगी के असली मकसद से दूर
ले जाती है॥ जो आदमी अपनी दुनियावी खाविषों का तलबगार रहता है, संसारी रंग तमाशों को
सचा मानता है, उसके हिस्से में अखरीयत में फ़ना की खाक ही आती है ॥
अब सवाल यह पैदा होता है
कि इस इंसानी जामे का सब से लाज़मी मकसद क्या है॥ फलसफा बस इतना ही है-- मुरशिद-ए कामिल की तरीकत और इबादत से खुदा से नजदीकी पैदा करनी, शरिया से ऊपर उठ जाना,
रब-ए- करीम से विसाल की तमन्ना करना और तौहीद का चह्वान होना॥ बाकी सब दुनियावी अम्लों को सरसरी तोर से समझना
और करना॥ हक हलाल की कमायी कर के अपनी ज़िमे- दारियों को निभाना, वालिद -वल्दियन,
बाजुर्गों की खिदमत और अपने खानदान की सेवा करना ॥ इन को फर्ज समझ कर दुनिया के काम
काज भी करना, ता कि कमायी नेकी की हो ॥ दिल नरम हो जाता है और हर तरह के जघड़े , मार
काट से आदमी कुदरती तोर से जुदा हो जाता है ॥
एक आम शकस के लिए फकीर
की ज़िंदगी बसर करना आसान नहीं है॥ पर फकीरी दुनिया को छोड़ने या त्याग या ला -तालुकी
भी नहीं है ॥ अपने असल की पहचान के लिए फकीरी क्या है ?? फकीरी वोह “फकर” का मुकाम
है या नफ़स की तबदीली है जिस में बंदा अंदर
से बदल जाता है , बातीनी बदलाव आ जाता है और
तनहायी की मजीद शिद्दत होती है ॥ ऐसी
तबदीली, जिसमे हयाती मकसद सिर्फ खुदा की रज़ा को खुशी से कबूलियत का शौक हो, और उसकी शौक मुरशिद-ए कामिल के हुक्म से
पाबंद हो॥ इबादत में कलमे या इस्म-ए आज़म,
कलामे-इलाही या आवाज़े मुस्तकीम या नूर-ए इलाही का जिक्र, फिक्र और रियाजत होती है ॥
दूसरे अल्फ़ाज़ों में इस
को इश्क -हक़ीक़ी भी कहा जा सकता है – जिस में विरह, तड़प, वैराग, सब्र और रज़ा के जज़्बात
अनासर होते हैं ॥ ऐसे सरूर का पता तब चलता
है मन दुनिया से उचाट हो जाए या बे -फिक्री आशना हो जाए और हिजर के हालात में
फुरकत से मोहब्बत पैदा हो जाए ॥ मोहब्बत भी एक अजीब शेय है --- सारी दुनिए से जनूनी
मुहब्बत करने से तो सिर्फ तकलीफ और जिल्लत ही मिलती है ॥ पर अगर खुदा से इश्क- हक़ीक़ी
हो जाए तो सारी कायनात की मोहब्बत बंदे को सजदा करती है ॥ रूह में हक़ीक़ी सकून का
आगाज होता है॥ अनल -हक की समझ आ जाती है ॥
विरला ही कोई ऐसा बशर
होगा , जिस पर रब की ऐसी रहमत होगी, फजल होगा, मौज होगी या करम होगा॥ लाज़िम यह है कि
ज़िंदगी की ऐसी ज़िमेदारी से गफलत नहीँ करनी चाहीये और खास तवजू देनी चाहीये ॥ रुहानियत का भी यही सार है ॥ यही इंसान की
कामयाबी है ॥
बहुत सुंदर ढंग से समझाया गया है रुहानियत का सार। मुश्किल यह है कि कोई विरला ही इस मुकाम तक पहुंचता है ।हम अपनी जिम्मेदारी में इतना डूब जाते हैं कि रब की सीढ़ी को छोड़ कहीं और ही रास्ता ले लिया जाता है। अपने धय पर स्थिर रहे उसके लिए कोई मेंटर चाहिए जो हमें सदा मददगार रहे।
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